________________ 411 गाथा 49 तीसरे अर्थ में कहते हैं कि परमार्थ से आत्मा पुद्गलद्रव्य का स्वामी भी नहीं है; इसलिए वह द्रव्येन्द्रिय के माध्यम से भी शब्द को नहीं सुनता; अत: अशब्द है। ___ चौथे अर्थ में कहते हैं कि स्वभावदृष्टि से देखा जाय तो भगवान आत्मा क्षायोपशमिकभावरूप भी नहीं है, इसकारण वह भावेन्द्रिय के माध्यम से भी शब्द नहीं सुनता; अतः अशब्द है। ___ पाँचवें अर्थ में यह कहा गया है कि आत्मा अकेले शब्द को नहीं जानता; क्योंकि उसका स्वभाव तो सभी को जानना है, पाँचों इन्द्रियों के विषयों को जानना है। अतः वह केवल शब्दवेदना परिणाम को पाकर शब्द नहीं सुनता; अतः अशब्द है। छठवें अर्थ में कहा गया है कि भगवान आत्मा शब्दों को जानता तो है, उनके ज्ञानरूप तो परिणमित होता है, पर शब्दरूप परिणमित नहीं होता; अतः अशब्द है। इसप्रकार ये छह अशब्द विशेषण के अर्थ हैं / इसके सन्दर्भ में भी वे सभी बातें लगा लेनी चाहिए, जो अरस, अरूप, अगंध और अस्पर्श के बारे में कही गई हैं। अब अनिर्दिष्टसंस्थान विशेषण पर विचार करते हैं। निर्दिष्ट माने कहा जाना और संस्थान माने आकार। जिसके आकार के बारे में कुछ भी कहा जाना संभव नहीं हो, उसे अनिर्दिष्टसंस्थान कहते हैं। ___ यह असंख्यातप्रदेशी भगवान आत्मा संसारावस्था में जिस शरीर में रहता है, उसी के आकार में परिणमित हो जाता है। आत्मा का कोई आकार तो सुनिश्चत है नहीं, इसकारण उसके आकार के बारे में यही कहा गया है कि वह निश्चय से असंख्यातप्रदेशी है और व्यवहार से स्वदेहप्रमाण है। अत: निश्चय से उसके आकार के बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं है। यही कारण है कि उसे यहाँ अनिर्दिष्टसंस्थान कहा गया है। 2 हा