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________________ 224 समयसार अनुशीलन यहाँ कलशटीका की एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि जहाँ सर्वत्र दर्शन का अर्थ श्रद्धान, प्रतीति, अपनापन, एकत्व, ममत्व किया जाता है और ज्ञान का अर्थ जानना तथा चारित्र का अर्थ रमना, जमना, वीतरागतारूप परिणमन करना, शान्त रहना किया जाता है; वहाँ कलशटीका के इस प्रकरण में निम्नानुसार अर्थ किया है - "सामान्यरूप से अर्थग्राहक शक्ति का नाम दर्शन है, विशेषरूप से अर्थग्राहक शक्ति का नाम ज्ञान है और शुद्धत्वशक्ति का नाम चारित्र है।" उक्त कथन में 'दर्शन' को दर्शनगुण की पर्याय के रूप में ग्रहण किया गया है, जबकि अन्य सब जगह श्रद्धागुण की पर्याय के रूप में ग्रहण किया जाता है। प्रश्न -क्या यह ठीक है? उत्तर -इसमें ठीक या गलत होने की क्या बात है? जब शब्दों के विभिन्न अर्थ होते हैं तो विद्वानों द्वारा उनके विभिन्न अर्थ किये जाने पर क्या आपत्ति हो सकती है? हाँ, यह बात अवश्य है कि वे अर्थ सिद्धान्तानुसार और प्रसंगानुकूल होना चाहिए। अन्धश्रद्धा अन्धश्रद्धा तर्क स्वीकार नहीं करती। यही कारण है कि अंधश्रद्धालु को सही बात समझा पाना असंभव नहीं तो कष्ठसाध्य अवश्य है । यदि वह तर्कसंगत बात को स्वीकार करने लगे तो फिर अन्धश्रद्धालु ही क्यों रहे ? अन्धश्रद्धालु को हर तर्क कुतर्क दिखाई देता है। इष्ट की आशा और अनिष्ट की आशंका उसे सदा भयाक्रान्त रखती है। भयाक्रान्त व्यक्ति की विचारशक्ति क्षीण हो जाती है। उसकी इसी कमजोरी का लाभ कुछ धूर्त लोग सदा से ही उठाते आये हैं और उठाते रहेंगे । - सत्य की खोज, अध्याय ७, पृष्ठ ३६
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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