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________________ 157 कलश ८ 1 - निक्षेप चार प्रकार के हैं - नामनिक्षेप, स्थापनानिक्षेप, द्रव्यनिक्षेप और भावनिक्षेप | गुण की अपेक्षा बिना वस्तु का नामकरण करना नामनिक्षेप है; 'यह वह है ' इसप्रकार अन्य वस्तु में किसी अन्य वस्तु का प्रतिनिधित्व स्थापित करना स्थापनानिक्षेप है; अतीत और भावी पर्यायों का वर्तमान में आरोप करना द्रव्यनिक्षेप है और वर्तमान पर्यायरूप वस्तु को वर्तमान में कहना भावनिक्षेप है । ये चारों ही निक्षेप अपने-अपने लक्षणभेद से विलक्षण ( भिन्नभिन्न) अनुभव किए जाने पर भूतार्थ हैं, सत्यार्थ हैं और भिन्न-भिन्न लक्षण से रहित एक अपने चैतन्यलक्षणरूप जीवस्वभाव का अनुभव करने पर ये चारों ही अभूतार्थ हैं, असत्यार्थ हैं । इसप्रकार इन प्रमाण, नय, निक्षेपों में भूतार्थरूप से एक जीव ही प्रकाशमान है।" पहले कहा था कि नवतत्त्वों में भूतार्थरूप से एक जीव ही प्रकाशमान है और यहाँ कहा जा रहा है कि इन प्रमाण, नय, निक्षेपों में भी भूतार्थनय से एक जीव ही प्रकाशमान है । इसप्रकार एकमात्र यही कहा जा रहा है कि नवतत्त्वों में भी एकमात्र शुद्धजीवतत्त्व ही प्रकाशमान है और प्रमाण, नय, निक्षेपों में भी एकमात्र वही शुद्धजीवतत्त्व प्रकाशमान है। यह प्रकाशमान जीवतत्त्व ही दृष्टि का विषय है, श्रद्धा का श्रद्धेय है, ध्यान का ध्येय है, परमज्ञान का ज्ञेय है, मुक्तिमार्ग का मूल आधार हैं, इसके आश्रय से ही मुक्ति का मार्ग प्रगट होता है । जब वह शुद्धजीवास्तिकाय ज्ञान का ज्ञेय, श्रद्धान का श्रद्धेय और ध्यान का ध्येय बनता है अर्थात् आत्मा का अनुभव होता है, आत्मानुभूति होती है, तब प्रमाण-नय-निक्षेप की तो बात ही क्या; परन्तु किसी भी प्रकार का द्वैत ही भासित नहीं होता है, एक आत्मा ही प्रकाशमान होता है । यही भाव आगामी कलश में भी व्यक्त किया गया है, जो इसप्रकार है
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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