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________________ 143 गाथा १३ मोक्ष। चूँकि तत्त्व नौ हैं, अत: एक तो बिना जोड़े का रहना ही था। इस कारण निर्जरा तत्त्व बिना जोड़े के रह गया है और सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार तो स्वतंत्र है ही। ___ यद्यपि कर्ता-कर्म और सर्वविशुद्धज्ञान – ये दो नवतत्त्वों में नहीं आते हैं, तथापि इनके सन्दर्भ में जनसामान्य में बहुत अज्ञान रहता है। इस अज्ञान का निवारण किए बिना आत्मतत्त्व को सही रूप में समझ पाना संभव नहीं है। अत: इन्हें भी समयसार में स्थान प्राप्त हुआ है। कर्ता-कर्म अधिकार को जीवाजीवाधिकार के तत्काल बाद क्यों रखा गया है? यहाँ यह प्रश्न उठना भी स्वाभाविक है। कर्ता-कर्म संबंधी भूल प्रकारान्तर से जीव-अजीव संबंधी भूल ही है; क्योंकि जीव को अजीव का और अजीव को जीव का कर्ता-भोक्ता मानना भी जीव-अजीव संबंधी भूल ही है। इसकारण इसे जीवाजीवाधिकार के तत्काल बाद रखा गया है। प्रश्न - यदि कर्ता-कर्म संबंधी भूल जीव-अजीव संबंधी भूल ही है तो फिर इस अधिकार की विषय-वस्तु को जीवाजीवाधिकार में ही शामिल कर लेना चाहिए; पृथक् अधिकार बनाने की क्या आवश्यकता है? उत्तर - कर्ता-कर्म संबंधी भूल की ओर विशेष ध्यान आकर्षित करने के लिए यह आवश्यक था कि तत्संबंधी अधिकार स्वतंत्र रखा जाय। न केवल कर्ता-कर्म अधिकार स्वतंत्र है, अपितु यह सभी अधिकारों में सबसे बड़ा अधिकार भी है । ४१५ गाथाओं के समयसार में यह अकेला ही ७६ गाथाओं के अपने में समेटे हुए है। सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार में भी कर्ता-कर्म संबंधी भूल पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि मुक्ति के मार्ग में कर्ता-कर्म संबंधी भूल का निवारण करना कितना आवश्यक है?
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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