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________________ समयसार अनुशीलन 128 इसप्रकार इस बारहवीं गाथा में यह कहा गया है कि व्यवहारनय अभूतार्थ है, असत्यार्थ है; तथापि वह भी कभी-कभी किसी-किसी को प्रयोजनवान है । 'निश्चय-व्यवहारनयों की उपयोगिता पर समुचित प्रकाश डालने के उपरान्त अब स्याद्वादांकित जिनवचनों में रमण करनेवाले सत्पुरुष ही समयसार को प्राप्त करते हैं'- इसप्रकार के भावों से भरा हुआ मंगल कलश स्थापित करते हैं। ___ आचार्य अमृतचन्द्र ने समयसार की विषयवस्तु को लेकर अध्यात्मरस से सरावोर २७८ छन्द लिखे हैं, जो 'आत्मख्याति' नामक संस्कृत टीका के ही अभिन्न अंग हैं । आत्मख्याति टीकारूपी स्वर्णहार में वे मुक्तामणियों की भाँति यथास्थान जड़े हुए हैं। इसप्रकार इस आत्मख्याति टीका में विविधवर्णी छन्दों और प्राञ्जल गद्य का मणिकांचन संयोग हो रहा है। विषयवस्तु के अनुसार विविधवर्णी छन्दों में रचित और विभिन्न अलंकारों से अलंकृत ये छन्द 'कलश' नाम से जाने जाते हैं। आत्मख्याति से सुसज्जित समयसाररूपी मन्दिर के गगनचुम्बी शिखर पर आरोहित ये कलश अपने आप में अद्भुत हैं, अजोड़ हैं। आत्मख्याति में तो वे तिल में तेल की भाँति समाहित हैं ही, वे पृथक्प से स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में भी प्रतिष्ठित हो चुके हैं। आत्मख्याति संस्कृत टीका की भाषाटीका लिखनेवालों ने तो उनका अनुवाद किया ही है, किन्तु उनपर स्वतंत्ररूप से भी टीकाएँ लिखी गई हैं; जिनमें आचार्य शुभचन्द्रकृत 'परमाध्यात्मतरंगिणी' नामक संस्कृत टीका, कलशटीका नाम से प्रसिद्ध पाण्डे राजमलजी बालबोध नाम की हिन्दी टीका एवं 'अध्यात्म-अमृतकलश' नाम से प्रसिद्ध पण्डित जगन्मोहनलालजी की 'स्वात्मप्रबोधनी' नाम की हिन्दी टीका उल्लेखनीय हैं।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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