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गयी थी कि डॉ. भारिल्ल जैसे अधिकारी विद्वान से इसका मर्म सुनने को मिले। चर्चा के समय ही डॉ. भारिल्ल ने एक बार मुझे कहा भी था कि ह्र "कलकत्ता में रहस्यपूर्णचिट्ठी पर प्रवचन हुए हैं और खुलासा अच्छा हुआ है।" उसी समय से इस विषय के प्रवचनों की सुनने-जानने की तीव्र भावना थी। तथापि प्रवचनों को (सी.डी. के माध्यम से) सुनना नहीं बना । मुझे ऐसा सौभाग्य इस कृति से मिला कि वे ही प्रवचन डॉ. भारिल्ल द्वारा संशोधित होकर पढ़ने को मिले।
इस कृति का शब्द-शब्द मैंने प्रकाशन के पूर्व ही पढ़ा है, उसका आनन्द भी प्राप्त किया है। शुद्धोपयोग एवं शुद्धपरिणति का विशेष विवेचन किसी न किसी कृति में विस्तारपूर्वक आयेगा तो अच्छा, ऐसा विचार भी मेरे मन में अनेक वर्षों से आया करता था। इस पुस्तक में शुद्धोपयोग तथा शुद्धपरिणति का खुलासा भी डॉ. भारिल्ल की लेखनी से शब्दबद्ध हुआ है।
इस कृति के प्रूफ पढ़ते समय भी मैंने डॉ. भारिल्ल से कहा था कि ह्र अनेक पात्र पाठक अपनी-अपनी पर्यायगत योग्यता से रहस्य का ज्ञान करने लायक तैयार हो गये हैं, हो रहे हैं। इसी समय यह कृति भी आपके द्वारा लिखी जा रही है। इस सहज योग को भी मैं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानता हूँ। यदि ऐसा सहज योग न बने तो पण्डित श्री दीपचन्दजी कासलीवाल के जीवन जैसा स्वरूप भी बन सकता है। पण्डित दीपचन्दजी तत्त्व की सूक्ष्म एवं रहस्यमयी विषय को सुनाना चाहते थे; परन्तु सुनने-समझने लायक श्रोता सामने उपलब्ध नहीं थे। अति राग के कारण किसी को सुनाते थे तो सुननेवाले लड़ पड़ते थे। उस समय की अभी तुलना करते हैं तो सात्त्विक आनन्द हुए बिना नहीं रहता; क्योंकि आज डॉ. भारिल्ल को सुनने-पढ़नेवाले देश-विदेश में लाखों लोग हैं।
वर्तमान काल का यह सौहार्दपूर्ण वातावरण वर्तमान की उज्ज्वलता को स्पष्ट करता है, साथ ही साथ उज्ज्वल भविष्य का सूचक है ह्र ऐसा कहनामानना अप्रासंगिक नहीं होगा।
शुद्ध व सुन्दर टाइपसैटिंग के लिए दिनेश शास्त्री एवं सुन्दरतम मुद्रण के लिए अखिल बंसल धन्यवाद के पात्र हैं।
'रहस्य : रहस्यपूर्णचिट्ठी का' लाभ पाठक लेंगे ही लेंगे ह्र इस विश्वास के साथ विराम लेता हूँ।
ह्र ब्र. यशपाल जैन एम.ए. प्रकाशन मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट