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________________ रहस्य : रहस्यपूर्णचिट्ठी का कि अहो ! मुझे तो इन बातों की खबर ही नहीं, मैं भ्रम से भूलकर प्राप्त पर्याय में ही तन्मय हुआ; परन्तु इस पर्याय की तो थोड़े ही काल की स्थिति है; तथा यहाँ मुझे सर्व निमित्त मिले हैं, इसलिए मुझे इन बातों को बराबर समझना चाहिए, क्योंकि इनमें तो मेरा ही प्रयोजन भासित होता है। ऐसा विचारकर जो उपदेश सुना उसके निर्धार करने का उद्यम किया।" ___मोक्षमार्ग, देव-गुरु-धर्म, जीवादि प्रयोजनभूततत्त्व, स्व और पर का भेद जाननेरूप भेदविज्ञान और अपने हितकारी भाव और अहितकारी भाव; आत्मकल्याण के लिए बस इतना जानना ही पर्याप्त है। अत: जिन शास्त्रों में उक्त विषय समझाये गये हों, वे शास्त्र ही मुख्यरूप से स्वाध्याय करने योग्य हैं तथा गुरुओं से भी उक्त बातों को समझने का आग्रह रखना चाहिए, विनयपूर्वक निवेदन करना चाहिए। पर इस बात का ध्यान रहे कि जिनवाणी के प्रति अश्रद्धा के साथ किया गया स्वाध्याय आत्मकल्याण के लिए रंचमात्र भी कार्यकारी नहीं होता। पण्डितजी तो कहते हैं कि जिनागम में वर्णित वस्तुस्वरूप को सुनकर या पढ़कर हमें इसप्रकार के अहो भाव जागृत होना चाहिए कि हमें तो इन बातों का पता ही नहीं था, हम तो प्राप्त पर्याय में ही तन्मय थे. पर इस पर्याय की स्थिति तो बहुत थोड़े काल की है। आज हमें इस बात को समझने की पूरी अनुकूलता है, अत: हमें इन बातों को गहराई से समझने का प्रयास करना चाहिए; क्योंकि इनके समझने में ही हमारा भला है। ___ यदि इसप्रकार के भाव जागृत होते हैं तो समझना चाहिए कि हम सही मार्ग पर हैं; क्योंकि शंका-आशंका से आरंभ किया गया अध्ययन लाभकारी नहीं होता। जिनवाणी में लिखा है कि आत्मा अनादि-अनन्त है, असंख्यातप्रदेशी है, अनंतगुणवाला है, आनंद का कंद है, ज्ञान का घनपिण्ड है। ऐसा आत्मा तू स्वयं हैं। इसप्रकार की बातें सुनकर हमें ऐसा भाव आना चाहिए कि अहो ! मुझे तो इस बात की खबर ही नहीं थी, मैं तो अपने १. मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ २५७ चौथा प्रवचन को मनुष्य ही मान रहा था, पर इस मनुष्य पर्याय की स्थिति ७०-८० वर्ष की है और में अनादि-अनन्त हँ। अत: मैं मनुष्य नहीं हो सकता; क्योंकि मनुष्य-पर्याय के नाश होने पर भी मैं तो रहूँगा ही। यदि इसप्रकार के भाव आवें तो समझना चाहिए कि हमारा चिन्तन सही दिशा में है; पर अधिकांश लोगों को तो इसप्रकार के विकल्प उठते हैं कि आत्मा के असंख्यप्रदेश, अनंतगुण किसने देखे हैं। इसीप्रकार यह आत्मा अनादि का है और अनंतकाल तक रहेगा ह्न इसकी क्या गारंटी है। इसप्रकार शंका से आरंभ करनेवालों को स्वाध्याय का असली लाभ प्राप्त नहीं होता। जरा, सोचो तो सही कि जब डॉक्टर हम से कहता है कि आपके हृदय के बाल्व खराब हो गये हैं, उन्हें बदलना पड़ेगा। तब हम बिना मीन-मेख किये उसकी बात स्वीकार कर लेते हैं। उसे चीर-फाड़ के लिए वक्षस्थल प्रस्तुत कर देते हैं, लिखकर दे देते हैं कि आप ऑपरेशन करिये, यदि हम मर गये तो आपकी जिम्मेदारी नहीं है। डॉक्टर पर हम इतना भरोसा करते हैं, तभी शारीरिक दुःख से मुक्ति मिलती है। मिथ्यादृष्टि एवं रागी-द्वेषी डॉक्टर का इतना भरोसा और वीतरागी ज्ञानी धर्मात्माओं की वाणी का अध्ययन आशंकाओं के बीच रहकर करना चाहते हैं। इसीलिए तो पण्डितजी कहते हैं कि आत्मा की बात सुनकर ऐसा भाव आना चाहिए कि हमें तो इन बातों की खबर ही न थी। हम सब जानते हैं, हमें सब पता है है इसप्रकार के अहंकार से भरा चित्त जिनवाणी के श्रवण-पठन का पात्र नहीं है। हम क्या करें, हमें तो कोई समझानेवाला ही नहीं है तू इसप्रकार के भावों की अपेक्षा ऐसा विचार आना चाहिए कि आज मुझे जिनागम उपलब्ध है, उसे समझानेवाले भी उपलब्ध हैं। कभी-कभी तो मैं कहता हूँ कि आज का जमाना भगवान महावीर के जमाने से भी अच्छा है। भगवान महावीर की ऑडियो, वीडियो उपलब्ध नहीं है; पर आज हमारे पास आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी
SR No.009470
Book TitleRahasya Rahasyapurna Chitthi ka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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