________________
प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
वर्तमानकाल में हुए २४ तीर्थंकरों के लिए अर्घ्य
(चाल) मनु नाभि महीधर जाये, मरुदेवि उदर उतराए। युग आदि सुधर्म चलाया, वृषभेष जजों वृष पाया ।।१।।
ॐ ह्रीं श्री ऋषभजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।४२।। जित शत्रु जने व्यवहारा, निश्चय आयो अवतारा। सब कर्मन जीत लिया है, अजितेश सुनाम भया है ।।२।।
ॐ ह्रीं श्री अजितजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।४३।।। दृढराज सुयश आकाशे, सूरजसम नाथ प्रकाशे। जग-भूषण शिवगति दानी, संभव जज केवलज्ञानी ।।३।।
ॐ ह्रीं श्री सम्भवजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।४४।। कपिचिह्न धरे अभिनंदा, भवि जीव करे आनन्दा । जन्मन-मरणा दुःख टारें, पूजें ते मोक्ष सिधारें।।४।।
ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दनजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।४५।। सुमतीश जजों सुखकारी, जो शरण गहें मतिधारी। मति निर्मल कर शिव पावें, जग-भ्रमण हि आप मिटावें ।।५।।
ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा ।।४६।। धरणेश सुनृप उपजाए, पद्मप्रभ नाम कहाये। है रक्त कमल पग चिह्ना, पूजत सन्ताप विछिन्ना ।।६।।
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।४७।। जिनचरणा रज सिर दीनी, लक्ष्मी अनुपम कर कीनी। हैं धन्य सुपारश नाथा, हम छोड़े नहिं जग साथा ।।७।। ___ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।४८।। शशि तुम लखि उत्तम जग में, आया वसने तव पग में।
हम शरण गही जिन चरणा, चन्द्रप्रभ भवतम हरणा ।।८।। rr ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा ।।४९।। 11