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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
।। तजि चक्र सुदर्शन, धर्मचक्र को पाया,
कल्याणमयी जिन धर्म तीर्थ प्रगटाया ।। अनुपम प्रभुता माहात्म्य विश्व से न्यारा,
चित शान्त हुआ मैं जाना जाननहारा ।।३।। गुणगान करूँ हे नाथ आपका कैसे ?
हे ज्ञानमूर्ति हो आप आप ही जैसे। हो निर्विकल्प निर्ग्रन्थ निजातम ध्याऊँ,
परभावशून्य शिवरूप परमपद पाऊँ ।। अद्वैत नमन हो प्रभो सहज अविकारा,
चित शान्त हुआ मैं जाना जाननहारा ।।४।। कुछ रहा न भेद विकल्प पूज्य पूजक का,
उपजे न द्वन्द दुःखरूप साध्य साधक का। ज्ञाता हूँ ज्ञातारूप असंग रहूँगा,
पर की न आस निज में ही तृप्त रहूँगा ।। स्वभाव स्वयं को होवे मंगलकारा, चित शान्त हुआ मैं जाना जाननहारा ।।२।।
(धत्ता) जय शान्ति जिनेन्द्रं, आनन्दकन्दं, नाथ निरंजन कुमतिहरा । जो प्रभु गुण गावें, पाप मिटावें, पावें आतमज्ञान वरा ।। ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा) भक्तिभाव से जो जजें, जिनवर चरण पुनीत । वे रत्नत्रय प्रगटकर, लहें मुक्ति नवनीत ।।
( पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् )