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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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जेठ कृष्ण चौदशि दिना, भये सिद्ध भगवान।
भाव सहित प्रभु पूजते, होवे सुख अम्लान ।। ॐ ह्रीं श्रीज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
( चौपाई) जय जय शान्ति नाथ जिनराजा, गाँऊ जयमाला सुखकाजा। जिनवर धर्म स मंगलकारी, आनन्दकारी भवदधितारी ।।
(लावनी) प्रभु शान्तिनाथ लख शान्त स्वरूप तुम्हारा ।
चित शान्त हुआ मैं जाना जाननहारा ।।टेक ।। हे वीतराग सर्वज्ञ परम उपकारी,
अद्भुत महिमा मैंने प्रत्यक्ष निहारी। जो द्रव्य और गुण पर्यय से प्रभु जानें,
वे जानें आत्मस्वरूप मोह को हाने ।। विनशें भव बन्धन हो सुख अपरम्पारा,
चित शान्त हुआ मैं जाना जाननहारा ।।१।। हे देव ! क्रोध बिन कर्म शुत्र किम मारा?
बिन राग भव्य जीवों को कैसे तारा ? निर्ग्रन्थ अकिंचन हो त्रिलोक के स्वामी,
हो निजानन्दरस भोगी योगी नामी ।। अद्भुत, निर्मल है सहज चरित्र तुम्हारा,
चित शान्त हुआ मैं जाना जाननहारा ।।२।। सर्वार्थ सिद्धि से आ परमार्थ सु साधा,
हो कामदेव निष्काम तत्त्व आराधा