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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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रत्नत्रय हो सदा प्रकाशित, ऐसा द्रव्य सुदेश मिले। . समीचीन तप की वृद्धि हो, ऐसा उत्तम काल मिले।। निर्मल परिणति हो प्रसन्न, प्रभु! ऐसा उत्तम भाव मिले। मोक्षार्थी मुनिगण की परिणति में रत्नत्रय सुमन खिलें।16।।
घातिकर्म क्षय किये जिन्होंने उदित हुआ कैवल्य प्रकाश। शान्ति प्रदान करें जग को वृषभादिक चौबीसों जिनराज।।17।।
अंचलिका हे प्रभु! शान्ति भक्ति करके अब मैंने कायोत्सर्ग किया। इसमें लगे हुए दोषों का अब मैं आलोचन करता।। पञ्च महाकल्याण सुशोभित प्रातिहार्य अतिशय भूषित। बत्तिस इन्द्रों के मणिमय किरीटयुत मस्तक से पूजित ।।1।। चक्री नारायण बलभद्र ऋषि यति अनगार सहित। लाखों स्तुतियों के घर ऋषभादि वीर पर्यन्त जिनेन्द्र।। सदा अर्चना पूजा वन्दन नमन करूँ हों सब दुःखक्षय। बोधिलाभ हो सुगति गमन हो जिनगुण सम्पत्ति हो अक्षय।।2।।
हे प्रभु! निज-संवेदन लक्षण-भूषित श्रुत-चक्षु द्वारा। केवलज्ञान चक्षु से मंडित, आज आपको देख रहा।।1।।
शास्त्राभ्यास जिनेन्द्र भक्ति संगति आर्यों की रहे सदा। सज्जन का गुणगान करूँ मैं दोष कथन नहिं करूँ कदा।। हित-मित-प्रिय वाणी हो सबसे आत्म-भावना ही भाऊँ। गति अपवर्ग न होवे जब तक भव-भव में यह वर पाऊँ।।2।।