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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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दश भक्ति संग्रह
भक्ति अधिकार
मंगलाचरण णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झयाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।। चत्तारि मंगलं, अरहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं। साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं ।। चत्तारि लोगुत्तमा, अरहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा।
साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो।। चत्तारिसरणंपव्वज्जामि,अरहते सरणंपव्वजामि, सिद्धेसरणंपव्वजामि। साहू शरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पव्वजामि।।
नमस्कार हो अर्हन्तों को सिद्धों को आचार्यों को। न| उपाध्यायों को वन्दूँ जग के सब मुनिराजों को।।। ।। मङ्गल चार जगत में श्री अर्हन्त सिद्ध प्रभु मङ्गल हैं। साधू मङ्गल और केवली भाषित धर्म सुमङ्गल हैं ।।2।। उत्तम चार लोक में है अर्हन्त सिद्ध प्रभु उत्तम हैं। साधु लोक में उत्तम जिनवर-कथित धर्म सर्वोत्तम है।।3।। शरण चार हैं मुझे, श्री अर्हन्त सिद्ध की शरण गहूँ। साधु-शरण में जाऊँ केवलि-कथित धर्म की शरण ल हूँ।।4।।