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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
निजभाव में ही लीन हो, मेहूँ जगत-फेरी। निर्ग्रन्थता की भावना अब हो सफल मेरी ।। कोई अपेक्षा हो नहीं, निर्द्वन्द्व हो जीवन । संतुष्ट निज में ही रहूँ, नित आप सम भगवन् ।। हो आप सम निर्मुक्त, मंगलमय दशा मेरी । निर्ग्रन्थता की भावना अब हो सफल मेरी ।। अब तो सहा जाता नहीं, बोझा परिग्रह का । विग्रह का मूल लगता है, विकल्प विग्रह का ।। स्वाधीन स्वाभाविक सहज हो, परिणति मेरी । निर्ग्रन्थता की भावना अब हो सफल मेरी ।।
महिमा है अगम जिनागम...
महिमा है, अगम जिनागम की ।। टेक ॥।
जाहि सुनत जड़ भिन्न पिछानी, हम चिन्मूरति आतम की ।। १ ।। रागादिक दुःखकारन जानैं, त्याग बुद्धि दीनी भ्रम की ।। २ ।। ज्ञानज्योति जागी उर अन्तर, रुचि बाढ़ी पुनि शम - दम की ॥ ३ ॥ कर्मबंध की भई निरजरा, कारण परम पराक्रम की ॥४ ॥ 'भागचन्द' शिव-लालच लाग्यो, पहुँच नहीं है जहँ जम की ॥ ५ ॥
धन्य-धन्य जिनवाणी माता...
धन्य-धन्य जिनवाणी माता, शरण तुम्हारी आये । परमागम का मन्थन करके, शिवपुर पथ पर धाये ॥ माता दर्शन तेरा रे! भविक को आनन्द देता है । हमारी नैया खेता है ।। १ ।। वस्तु कथंचित् नित्य-अनित्य, अनेकांतमय शोभे । परद्रव्यों से भिन्न सर्वथा, स्वचतुष्टयमय शोभे ।।
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