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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
आषाढ़ शुक्ला सप्तमी, गिरनारगिरि निज ध्याय के। श्री नेमिनाथ स्वधाम पहुँचे, अष्टगुण झलकाय के।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ हीं आषाढशुक्लसप्तम्यां श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।२२।।
शुभ श्रावणी सुद सप्तमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री पार्श्वनाथ स्वथान पहुँचे, सिद्धि अनुपम पाय के।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लसप्तम्यां श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।२३।।
आमावसी वद कार्तिकी, पावापुरी निज ध्याय के। श्री वर्द्धमान स्वधाम लीनो, कर्म वंश जलाय के। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्ण-अमावस्यां श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
जयमाला
(भुजंगप्रयात) नमस्ते नमस्ते नमस्ते जिनन्दा ।
तुम्हीं सिद्धरूपी हरे कर्म फंदा।। तुम्ही ज्ञानसूरज भविकनीरजों को।
तुम्हीं ध्येयवायू हरो सब रजों को ।।१।। तुम्हीं निष्कलंक चिदाकार चिन्मय ।
तुम्हीं अक्षजीतं निजाराम तन्मय ।। तुम्हीं लोकज्ञाता तुम्हीं लोकपालं ।
तुम्ही सर्वदर्शी हता मान कालं ।।२