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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
शुभ भाद्र सुद चौदश दिना, मंदारगिरि निज ध्याय के। श्री वासुपूज्य स्वथान लीनो, कर्म आठ जलाय के। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं भाद्रपदशुक्लचतुर्दश्यां श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।१२।।
आषाढ़ वद शुभ अष्टमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री विमल निर्मल धाम लीनो, गुण पवित्र बनाय के।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं आषाढ कृष्ण-अष्टम्यां श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
अमावसी वद चैत्र की, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। स्वामी अनन्त स्वधाम पायो, गुण अनन्त लखाय के ।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्ण-अमावस्यां श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्य | निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
शुभ ज्येष्ठ शुक्ला चौथ दिन, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री धर्मनाथ स्वधर्मनायक, भये निज गुण पाय के।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लचतुर्थ्यां श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।१५।।
शुभ ज्येष्ठ कृष्णा चौदसी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री शांतिनाथ स्वधाम पहुँचे, परम मार्ग बताय के।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के। ॐ हीं ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।१६