________________
152
प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
n वदि चैत अमावसि गाई, निसु केवलज्ञान उपाई। पूजूँ अनंत जिन चरणा, जो हैं अशरण के शरणा ।।
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्ण- अमावस्यां श्री अनंतनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।। १४ ।। मासांत पौष दिन भारी, श्री धर्मनाथ हितकारी । पायो केवल सद्द्बोधं, हम पूजें छांड़ कुबोधं ॥
ॐ ह्रीं पौषशुक्लपूर्णिमायाम् श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।। १५ ।। सुदिपूस इकादसि जानी, श्री शांतिनाथ सुखदानी । लहि केवल धर्म प्रचारा, पूजूँ मैं अघ हरतारा ।।
ॐ ह्रीं पौषशुक्ल एकादश्यां श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं. ।। १६ ।। वदि चैत्र तृतीया स्वामी, श्री कुन्थुनाथ गुणधामी । निर्मल केवल उपजायो, हम पूजत ज्ञान बढायो ।।
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णतृतीयायां श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।। १७ ।। कार्तिक सुदि बारस जानो, लहि केवलज्ञान प्रमाणो ।
पर तत्त्व - निजत्व प्रकाशा, अरनाथ जजों हत आशा ।।
ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्लद्वादश्यां श्रीअरनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।। १८ ।। दि पूस द्वितीया जाना, श्री मल्लिनाथ भगवाना ।
हत घाती केवल पाये, हम पूजत ध्यान लगाये ।।
ॐ ह्रीं पौषकृष्णद्वितीयायां श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।। १९ ।। वैसाख वदी नौमी को मुनिसुव्रत जिन केवल को ।
हि वीर्य अनंत सम्हारा, पूजूँ मैं सुख करतारा ।।
ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णनवम्यां श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।२०।। अगहन सुदि ग्यारस आए, नमिनाथ ध्यान लौ लाए । पाया केवल सुखदाई, हम पूजत चित हरषाई ।।
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ल एकादश्यां श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।। २१ ।। पडवा सुभ कार सुदी को, श्री नेमिनाथ जिनजीको । इच्छो केवल सत ज्ञानं, हम पूजत ही दुःख हानं ।।
ॐ ह्रीं आश्विनशुक्लप्रतिपदायां श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ॥ २ ॥