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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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LL एकादशि चैत सुदी को, जिन सुमति ज्ञान लब्धी को। ]]
पाकर भवि जीव उधारे, हम पूजत भव हरतारे।। ॐ हीं चैत्रशुक्ल-एकादश्यां श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।५।।
मधु शुक्ला पूरणमासी, पद्मप्रभ तत्त्व-अभ्यासी।
केवल ले तत्त्वप्रकाशा, हम पूजत समसुख भासा।। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लपूर्णिमायां श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।६।।
छठि फागुन की अंधियारी, चउ घातीकर्म निवारी।
निर्मल निज ज्ञान उपाया, धन धन सुपार्श्व जिनराया।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णषष्ठयां श्रीसुपार्श्वजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अय॑ ।।७।।
फागुन वदि नौमि सुहाई, चन्द्रप्रभ आतम ध्याई।
हन घाती केवल पाया, हम पूजत सुख उपजाया ।। | ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णनवम्यां श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।८।।
कार्तिकसुदि दुतिया जानो, श्री पुष्पदंत भगवानो।
रज हर केवल दरशानो, हम पूजत पाप विलानो।। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णद्वितीयायां श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं.।।९।।
चौदसि वदि पौष सुहानी, शीतलप्रभु केवलज्ञानी।
भव का संताप हटाया, समता सागर प्रगटाया।। ॐ ह्रीं पौषकृष्णचतुर्दश्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अयं ।।१०।।
वदि माघ अमावसि जानो, श्रेयांस ज्ञान उपजानो।
सब जग में श्रेय कराया, हम पूजत मंगल पाया। ॐ ह्रीं माघकृष्ण-अमावस्यां श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।११।।
शुभ दुतिया माघ सुदी को, पाया केवल लब्धी को।
श्री वासुपूज्य भवितारी, हम पूजत अष्ट प्रकारी। ॐ ह्रीं माघशुक्ल-द्वितीयायां श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।१२।।
छठि माघ वदी हत घाती, केवल लब्धी सुख लाती।
पाई श्री विमल जिनेशा, हम पूजत कटत कलेशा।। *हीं माघकृष्ण-षष्ठयां श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अय॑.||१सा