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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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शुभ दीप रत्नत्रय लाय तमोपहारी। तम मोह नाश मम हो आनन्द भारी ।। श्री तीर्थनाथ वृषभेष मुनीन्द्र चरणा,
पूर्णां सुमंगल करण सब पाप हरणा ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभतीर्थंकरमुनीन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
सुन्दर सुगंधित सु पावन धूप खेऊँ, अरु कर्म काट को थाल निजात्म बेऊँ। श्री तीर्थनाथ वृषभेष मुनीन्द्र चरणा,
पूजूं सुमंगल करण सब पाप हरणा ।। || ॐ ह्रीं श्रीऋषभतीर्थंकरमुनीन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
द्राक्षा बादाम फल सार भराय थाली, शिव लाभ होय सुख से समता संभाली। श्री तीर्थनाथ वृषभेष मुनीन्द्र चरणा,
पूजूं सुमंगल करण सब पाप हरणा ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभतीर्थंकरमुनीन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ अष्ट द्रव्यमय उत्तम अर्घ्य लाया, संसार खार जल तारण हेतु आया। श्री तीर्थनाथ वृषभेष मुनीन्द्र चरणा,
पूजूं सुमंगल करण सब पाप हरणा।। | ॐ ह्रीं श्रीऋषभतीर्थंकरमुनीन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
( सृग्विणी) जय मुदारूप तेरे सदा दोष ना, ज्ञान श्रद्धान पूरित धरै शोक ना। राज को त्याग वैराग्य धारी भए, मुक्ति का राज लेने परम मुनि थयै ।।१।।