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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
।। वदि फाल्गुन चौदसि स्वामी, श्री वासुपूज्य शिवगामी। ।।
तपसी हो समता साधी, हम पूजत धार समाधी ।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यां श्रीवासुपूज्यजिनेंद्राय तपकल्याणकप्राप्तायावँ ..।।१२।।
वदि माघ चौथ हितकारी, श्री विमल सुदीक्षा धारी।
निज परिणति में लय पाई, हम पूजत ध्यान लगाई।। ॐ हीं माघकृष्णचतुर्थ्यां श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायावँ...।।१३।।
द्वादशि वदि जेठ सुहानी, वन आए जिन त्रय ज्ञानी।
धर सामायिक तप साधा, हम पूजू अनंत हर बाधा ।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णद्वादश्यां श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायाS...॥१४॥
तेरस सुदि माघ महीना, श्री धर्मनाथ तप लीना।
वन में प्रभु ध्यान लगाया, हम पूजत मुनिपद ध्याया।। ॐ ह्रीं माघशुक्लत्रयोदश्यां श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायावँ ...।।१५।।
चौदस शुभ जेठ वदी में, श्री शांति पधारे वन में।
तहं परिग्रह तज तप लीना, पूजूं आतमरस भीना ।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायावँ...।।१६।।
करि दूर परिग्रह सारी, वैसाख सुदी पड़िवारी।
श्री कुन्थु स्वात्मरस जाना, पूजन से हो कल्याणा।। ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लप्रतिपदायां श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायावँ .।।१७।।
अगहन सुदि दशमी गाई, अरनाथ छोड़ गृह जाई।
तप कीना होय दिगंबर, पूजें हम शुभ भावों कर ।। ॐ ह्रीं मार्गशीषशुक्लदशम्यां श्रीअरनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायावँ...।।१८।।
अगहन सुदि ग्यारस कीना, सिर केशलोच हित चीन्हा।
श्री मल्लि यती व्रतधारी, पूजें नित साम्य प्रचारी ।। ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ल-एकादश्यां श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायाऱ्या विमामीति स्वाहा।।१९।।