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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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द्वादश शुभ माघ सुदी की, अभिनंदन वन चलने की। ।।
चित ठान परम तप लीना, हम पूजत हैं गुण चीन्हा।। ॐ ह्रीं माघशुक्लद्वादश्यां श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।४।।
नौमी वैसाख सुदी में, तप धारा जाकर वन में। __ श्री सुमतिनाथ मुनिराई, पूजूं मैं ध्यान लगाई।। | ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लनवम्यां श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायाy ...।।५।।
कार्तिक वदि तेरसि गाई, पद्मप्रभु समता भाई।
वन जाय घोर तप कीना, पूजें हम समसुखभीना।। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णत्रयोदश्यां श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायायँ ...।।६।।
सुदि द्वादश जेठ सुहाई, बारा भावन प्रभु भाई।
तप लीना केश उपाड़े, पूजू सुपार्श्व यति ठाड़े ।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लद्वादश्यां श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायावँ...।।७।।
एकादश पौष वदी को, चन्द्रप्रभु धारा तप को।
वन में जिन ध्यान लगाया, हम पूजत ही सुख पाया। ॐ ह्रीं पौषकृष्ण-एकादश्यां श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायाy...।।८।।
अगहन सुदि एकम जाना, श्री पुष्पदंत भगवाना।।
तप धार ध्यान निज कीना, पूजू आतम गुण चीन्हा ।।। ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लप्रतिपदायां श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायावँ ..।।९।।
द्वादशि वदी माघ महीना, शीतल प्रभु समता भीना।
तप राखो योग सम्हारो, पूजें हम कर्म निवारो।। ॐ ह्रीं माघकृष्णद्वादश्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायावँ...।।१०।।
वदि फाल्गुन ग्यारस गाई, श्रेयांसनाथ सुखदाई।
हो तपसी ध्यान लगाया, हम पूजत हैं जिनराया ।। ।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णएकादश्यांश्रीश्रेयांसनाथजिनेंद्राय तपकल्याणकप्राप्तायाS..।।११।।