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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
(मालती) जेठ वदी दसमी गणिये शुभ, मात सुश्यामा गर्भ पधारे, नाथ विमल आकुलता हारी, तीन ज्ञानधर धर्म प्रचारे ।। ता माता का धन्य भाग है, पूजत हैं हम अर्घ्य सुधारे,
मंगल पावें विघ्न नशावें, वीतरागता भाव सम्हारे ।। ॐ ह्रीं श्री ज्येष्ठकृष्णदशम्यां श्यामागर्भावतरिताय विमलनाथायावँ नि. स्वाहा ।।१३।।
(अडिल्ल) एकम कार्तिक कृष्ण गर्भ में आय के, नाथ अनन्त सु सुरजा माता पाय के। पूर्जू देवी सार धन्य तिस भाग है,
जासे विघ्न पलाय उदय सौभाग है ।। ॐ ह्रीं श्री कार्तिककृष्णप्रतिपदायां जयश्यामागर्भावतरितायानतनाथायावँ नि.स्वाहा ।।१४।।
(अडिल्ल) मात सुब्रता धर्म जिनं उर धारियो, तेरसि सुदि वैशाख सुसुख संचारियो। पूर्जे माता ध्याय धर्म उद्धारणी,
शिवपद जासे होय सुमंगल कारणी ।। | ॐ ह्रीं श्री वैशाखशुक्लत्रयोदश्यां सुव्रतागगर्भावतरिताय धर्मनाथायायं नि.स्वाहा ।।१५।।
(शिखरिणी) महा ऐरादेवी परम जननी शांति जिनकी, सुदी सातें भादों करत पूजा इन्द्र तिनकी। जगूं मैं ले अर्घ्य मात जिन के द्वन्द्व चरणा,
भजे मम अघ सारे, नसत भव है जास शरणा।। ॐ ह्रीं श्री भाद्रपदकृष्णसप्तम्यां ऐरादेविगर्भावतरिताय शांतिनाथायावँ नि.स्वाहा ।।१६।।
(चाली) सावन दशमी अन्धियारी, जिन गर्भ रहे सुखकारी।
प्रभु कुन्थु श्रीमती माता, पूर्जे जासों लहुँ साता ।। ॐ ह्रीं श्री श्रावणकृष्णदशम्यां श्रीमतीगर्भावतरिताय कुन्थुनाथायायँ नि. स्वाहा ।।१७।