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आठवाँ दिन
मोक्षकल्याणक
आज मोक्षकल्याणक का दिन है। पंचकल्याणक महोत्सव का आठवाँ दिन और पंचकल्याणक का पाँचवा दिन । आदिनाथ भगवान का मोक्ष कैलाश पर्वत से हुआ था। अतः यहाँ यह कैलाश पर्वत का दृश्य बनाया गया है। कैलाश पर्वत हिमालय के ही किसी भाग का नाम है । इसीकारण यह पर्वत बर्फीला बनाया गया है।
यद्यपि निर्वाण महोत्सव भी खुशी का महोत्सव है, क्योंकि यह आत्मा की सर्वोच्च उपलब्धि का दिन है; तथापि इस खुशी में चंचलता, खेलकूद, बढ़िया-बढ़िया खानपान आदि को कोई स्थान नहीं है; क्योंकि वह भगवान के संयोग का नहीं, वियोग का दिन है ।
अबतक उनकी दिव्यध्वनि का लाभ सभी को प्राप्त हो रहा था। अब सभी भक्तजन इस लाभ से वंचित हो गये हैं। हम उन अयोध्यावासियों की कल्पना करें, जो लोग अबतक भगवान ऋषभदेव की दिव्यध्वनि प्रतिदिन सात-सात घंटे सुनते थे, पर आज सब अनाथ से हो गये हैं। उनकी मन:स्थिति में अपने को रखकर हम देखें तो हमें यह आभास हो सकता है कि निर्वाणमहोत्सव का क्या रूप होना चाहिए ?
आज का दिन गंभीर चिन्तन का दिन है, अपने पैरों पर खड़े होने का दिन है। अबतक जो कुछ भी सुना है, समझा है; उसे जीवन में उतारने के संकल्प करने का दिन है।
मोक्ष माने मुक्त होना। दुखों से, विकारों से, बन्धनों से मुक्त होना ही मोक्ष है । मोक्ष आत्मा की अनंत - आनन्दमय अतीन्द्रिय दशा है। अबाधित अनन्तआनन्दमय होने से मोक्ष ही परमकल्याणकस्वरूप है । इस मोक्ष की प्राप्ति की