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________________ 71 सातवाँ दिन उसके सामने जो छात्र होते हैं, वे सभी नौवीं कक्षा पास होते हैं और कोई भी छात्र दशवीं कक्षा पास नहीं होता है। सभी छात्र उस भाषा को समझते हैं कि जिस भाषा में वह पढ़ाता है। अत: उसे पढ़ाने में भाषा और स्तर की कोई समस्या नहीं होती, किन्तु जब कोई वक्ता किसी सभा को सम्बोधित करता है तो उसके सामने जो श्रोता होते हैं, वे न तो सभी एक स्तर के होते हैं और न एक भाषा-भाषी ही होते हैं। अत: उसे भाषा और स्तर की समस्या का सामना करना होता है। __ वक्ता जितना बड़ा और जितना प्रभावशाली होगा, उसे सुनने वाले श्रोताओं के स्तर में उतना ही अधिक अन्तर होगा, भाषा संबंधी जटिलता भी उतनी ही अधिक होगी। जब देश का प्रधानमंत्री किसी सभा को संबोधित करता है या दूरदर्शन पर भाषण देता है तो उसके सामने जहाँ एक ओर अनेक भाषा-भाषी लोग बैठे होते हैं, वहीं विश्व के बड़े-बड़े नेता, बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारी, बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ भी उसे सुनते हैं और बिना पढ़ी-लिखी ग्रामीण जनता भी सुनती है, जिसमें आदिवासी एवं वे महिलाएँ भी होती हैं कि जिनको काला अक्षर भैंस बराबर होता है, ऐसी स्थिति में उसे अपनी रीति-नीति स्पष्ट करनी होती है। ___ जब तीर्थंकर जैसा प्रवक्ता होता है तो उसके सामने और भी अधिक विषमता होती है। जहाँ एक ओर गणधरदेव जैसे द्वादशांग के पाठी चार ज्ञान के धारी शुद्धोपयोगी सन्त होते हैं, द्वादशांग के पाठी सौधर्म इन्द्र जैसे देवगण होते हैं तो वहीं दूसरी ओर पशु-पक्षी भी उनकी धर्मसभा में देशना सुनने के लिए जातिगत वैर-विरोध छोड़कर शान्तभाव से बैठे होते हैं। अतः स्तर और भाषा की जटिलतम समस्या तीर्थंकर भगवान की धर्मसभा में भी होती है, जिसका समाधान उनका सातिशय पुण्य अनेक अतिशयों के माध्यम से करता है। उनकी ओंकार ध्वनि (दिव्यध्वनि) श्रोताओं के कान में पहुँचते-पहुँचते उनकी भाषा में परिणत हो जाती है और उनके स्तर के अनुरूप भगवान की
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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