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पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव उक्त बारह सभाओं के अतिरिक्त समोसरण में बाग-बगीचे, नाट्यशालाएँनृत्यशालाएँ आदि अनेक प्रकार की सुन्दरतम रचनाएँ होती हैं। यह जो आप समोसरण का दृश्य देख रहे हैं। यह उसका ही प्रतिरूप है।
भगवान की दिव्यध्वनि ओंकार स्वरूप एकाक्षरी होती है, जिसे अनक्षरी या निरक्षरी भी कहते हैं। यद्यपि उनकी ध्वनि निरक्षरी होती है, तथापि श्रोताओं के कान में पहुँचते-पहुँचते वह उनकी भाषा में परिणत हो जाती है। इसप्रकार उनके उपदेश को सब अपनी-अपनी भाषा में समझ लेते हैं। उनकी दिव्यध्वनि १८ महाभाषाओं और ७०० लघु भाषाओं में परिणत हो जाती है। देवशास्त्रगुरु पूजन की जयमाला में आता है न कि -
"दशअष्ट महाभाषा समेत, लघुभाषा सात शतक सुचेत।" भगवान ऋषभदेव वर्तमान चौबीसी में सबसे पहले तीर्थंकर थे, इसकारण उन्हें आदिनाथ भी कहते हैं। भगवान आदिनाथ के समोसरण में बीस हजार सीढ़ियाँ थी और वह बारह योजन के विस्तार में बना था।
समोसरण की रचना के सन्दर्भ में लोगों के चित्त में एक प्रश्न बार-बार उभरता है कि वीतरागी भगवान की धर्मसभा में बाग-बगीचे क्यों, नाट्यशालाएं-नृत्यशालाएँ क्यों ? राग-रंग के स्थान क्यों, नाच-गाने क्यों? अनेक आकर्षक लुभावनी रचनाएँ क्यों? इसीप्रकार बीस हजार सीढ़ियाँ क्यों? उनकी धर्मसभा तो समतल भूमि पर होना चाहिए; जिसमें रोगी, बाल, वृद्ध सभी आसानी से पहुँच सकें।
क्या आप जानते हैं कि बीस हजार सीढ़ियों का मतलब क्या होता है? इसका अर्थ यह हुआ कि समोसरण में जाना दो बार गिरनार की यात्रा करने के बराबर हो गया। यात्रा के लिए भी लोग डोलियों में जाते हैं। भगवान की वाणी सुनने के लिए जाने के लिए इतनी कष्टप्रद यात्रा क्यों? धर्मश्रवण के लिए तो सरलतम सहज व्यवस्था होनी चाहिए।