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पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
इस सन्दर्भ में विशेष जानकारी करना हो तो लेखक की अन्य कृति 'क्रमबद्धपर्याय'' का अध्ययन करना चाहिए, उसमें इस विषय का लगभग १५० पृष्ठों में अत्यन्त विशद स्पष्टीकरण है । यह विषय बहुत दिलचस्प है, क्रान्तिकारी है, जीवन बदल देनेवाला है; अतः सभी को चाहिए कि वह " क्रमबद्धपर्याय" को एक बार नहीं, अनेक बार पढ़ें और उसमें प्रतिपादित विषयवस्तु पर गहराई से मंथन करें, विचार करें, चिन्तन करें; आवश्यक प्रतीत हो तो विशेषज्ञों से भी उक्त प्रकरण पर विचार-विमर्श करें। जबतक किसी निर्णय पर न पहुँच जावें, विषय को छोड़े नहीं, उसकी तह तक पहुँचने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करें।
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केवलज्ञान अर्थात् सर्वज्ञता का स्वरूप जानना अत्यन्त आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य है; क्योंकि सर्वज्ञता धर्म का मूल है। सच्चे देव के स्वरूप में सर्वज्ञता शामिल है। जो वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी हो; वही सच्चा देव है - ऐसा रत्नकरण्ड श्रावकाचार में आचार्य समन्तभद्र लिखते हैं । सर्वज्ञता को समझे बिना सच्चे देव - शास्त्र - गुरु को भी समझना संभव नहीं है।
सच्चे देव-शास्त्र-गुरु को समझे बिना तो व्यवहार सम्यग्दर्शन भी होना संभव नहीं हैं । अतः इस विषय पर विस्तार से चर्चा अपेक्षित है, पर अभी यहाँ इतना समय नहीं है; क्योंकि अभी केवलज्ञानकल्याणक संबंधी और भी अनेक विषय स्पष्ट करने हैं।
ऋषभदेव मुनि अवस्था में एक हजार वर्ष तक रहे । दीक्षा लेने के एक हजार वर्ष बाद उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस पंचकल्याणक में आज केवलज्ञानकल्याणक का दिन है। आज केवलज्ञानकल्याणक के दिन ही वे भगवान बने। इसके पूर्व वे मुनिराज ऋषभदेव थे। उसके भी पहले वे राजा ऋषभदेव थे। उसके पहले राजकुमार ऋषभ थे।
केवलज्ञान होने के बाद उनकी दिव्यध्वनि खिरी, जिससे मुक्ति के मार्ग का उद्घाटन हुआ । केवलज्ञानकल्याणक के सन्दर्भ में भी निम्नांकित ३ बिन्दुओं पर विचार किया जाना आवश्यक है ।