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चौथा दिन
इन्द्रादि अवधिज्ञान आदि से यह जानकर कि ये तीर्थंकर और सर्वज्ञ परमात्मा होने वाले हैं और इनके द्वारा धर्मतीर्थ का प्रवर्तन होगा, भक्तिभाव से ये सभी उत्सव करते हैं। हम सब भी इसी भक्तिभाव से इस महोत्सव में सम्मिलित हुए हैं। अपने कल्याण के साथ-साथ जगत के कल्याण की भावना भी इस महोत्सव के मूल में है। ___ मूलत: तो हम सब आत्मकल्याण की भावना से ही इस पंचकल्याणक में सम्मिलित हुए हैं; अतः हमें अपनी भावनाओं को निर्मल बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में पधारने से आपके परिणाम निरन्तर निर्मल हो भी रहे हैं। इसका अनुभव आप स्वयं भी कर रहे होंगे। हम तो कर ही रहे हैं। आप जितने उत्साह से भाग ले रहे हैं, जितने समर्पित भाव से योगदान कर रहे हैं; उससे प्रतीत होता है कि आपकी भावनाओं में निर्मलता बढ़ी है। आपके समय और श्रम का सदुपयोग हो रहा है, पैसे का सदुपयोग हो रहा है।
मान लो आप यहाँ न आये होते, पंचकल्याणक में शामिल न हुए होते, इन्द्र न बने होते तो आप अभी कहाँ होते, क्या कर रहे होते ? जरा इसकी कल्पना करके देखिये। दुकान पर बैठे होते, ग्राहक पटा रहे होते,टी.वी. देख रहे होते या कुछ खा-पी रहे होते, चाय-पानी कर रहे होते या कहीं बैठेबैठे गप-सप कर रहे होते। ये सब काम तो पाप के ही काम हैं, पाप बंध के ही कारण हैं। ___ आप यहाँ आ गये हैं तो शान्तिपूर्वक बैठकर भगवान का गुणानुवाद कर रहे हैं, तत्त्वचर्चा सुन रहे हैं, विद्वानों के प्रवचनों के माध्यम से अपने तत्त्वज्ञान को निर्मल कर रहे हैं, पंचकल्याणकों के दृश्य देखकर अपने परिणामों को निर्मल कर रहे हैं। ये सब पुण्यकार्य हैं, पवित्र कार्य हैं, पुण्यबंध करने वाले कार्य हैं, सद्धर्म की वृद्धि करने वाले कार्य हैं, सद्ज्ञान प्राप्ति के मंगल कार्य हैं।