SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 17 तीसरा दिन दी जाती है, इन्द्रादि बनने की नहीं; तथापि इन्द्र व राजा बनने वाले तो बहुत मिल जाते हैं, भगवान के माँ-बाप बनने वाले भी मिल जाते हैं, पर भगवान बनने की कोई नहीं सोचता। भगवान के माँ-बाप बनने का काम भी बहुत बड़ी जिम्मेवारी का काम है। माँ-बाप बनने वालों को स्वयं इसे समझना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि उनके जीवन को देखकर लोगों के हृदय में तीर्थंकरों के माँ-बाप की गरिमा कम हो जावे। माता-पिता का चुनाव तो सब प्रकार की योग्यता देखकर प्रतिष्ठाचार्यों को ही करना चाहिए। स्वयं उत्सुकता प्रदर्शित करना अच्छी बात नहीं है। आठ-दस वर्ष पहले की बात है कि एक सेठजी मेरे पास आये और कहने लगे कि अगले पंचकल्याणक में मुझे भगवान के माँ-बाप बनने का अवसर देना। मैंने कहा - "इसका निर्णय तो प्रतिष्ठाचार्य ही करते हैं ?" वे बोले - "मैंने उनसे भी कहा है। वे आपके ही तो शिष्य हैं। अतः आपके कान में भी बात डाल देना चाहता हूँ।" मैं चुप रह गया। अनेक वर्षों बाद मेरे पास आये और बड़े जोश में बोलने लगे - "आप सब ..." मैंने कहा - "क्या हुआ ? इतने नाराज क्यों हो रहे हो?" उन्होंने बताया कि अनेक बार भावना प्रदर्शित कर देने पर भी मैं अभी तक भगवान का माँ-बाप नहीं बन पाया हूँ। आपके प्रतिष्ठाचार्य सुनते ही नहीं। आप ही कोई विधि बताइये न। _ विनम्रता से समझाते हुए मैंने उनसे कहा कि मैं क्या कर सकता हूँ? मैंने शास्त्रों में भगवान बनने की विधि तो पढ़ी है, पर भगवान के बाप बनने की विधि कहीं नहीं देखी। अतः मैं आपको क्या बता सकता हूँ?
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy