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दूसरा दिन में प्रतिष्ठित जिनबिम्बों की पूजा-पाठ कौन करेगा? उनकी यह चिन्ता तो समाप्त होनी ही चाहिए। ___ आप जरा सोचिए तो सही कि आप शान्ति के इस महायज्ञ में पधारे हैं, तो क्या आपका चित्तरंचमात्र भी शान्त न होगा, विषय-कषाय की ज्वालाएँ वैसी की वैसी ही जलती रहेंगी?
जब हम बहुत गर्मी का अनुभव करते हैं तो पाँच मिनट के लिए स्नानघर में चले जाते हैं और ठंडे पानी से नहाते हैं तो हमारी गर्मी शान्त हो जाती है; तो क्या हमारे ये आठ दिन के पंचकल्याणक महोत्सव उस पाँच मिनट के स्नानघर से भी गये-बीते हैं, जो इनमें आठ-आठ दिन रहकर भी हमारे चित्त में रंचमात्र भी शान्ति न आवे ? इस महोत्सव की लाज अब आपके हाथ में है। ___ पत्थर की मूर्तियाँ तो भगवान बन के जायेंगी, पर हम तो चैतन्यतत्व हैं; क्या हम पत्थर की जड़-मूर्तियों से भी गये-बीते हैं, जो वैसे के वैसे ही चले जावेंगे? आज हम सब को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। __ यदि आप यहाँ से कुछ लेकर गये, कुछ शान्त होकर गये, कुछ बदलकर गये, कुछ धर्मनिष्ठ होकर गये, तो उसमें आपका तो परम लाभ है ही; पंचकल्याणक की भी सार्थकता इसी में है और आयोजकों के श्रम की सफलता भी इसी में है।
यह पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव जिनेन्द्र प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा का महोत्सव है, पर आज यहाँ इन्द्र प्रतिष्ठा हो रही है। ___ यह तो आप जानते ही हैं कि तीर्थंकरों के जो असली पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव हुए थे, उन सभी का संचालन इन्द्रों ने ही किया था। तीर्थंकरों के जन्मादि के सभी उत्सव मुख्यरूप से इन्द्रों द्वारा ही सम्पन्न होते हैं। अतः उन पंचकल्याणकों की नकल के आधार पर होने वाले इन पंचकल्याणकों में भी इन्द्रों की आवश्यकता होती है। तदर्थ कुछ व्यक्तियों को चुनकर इन्द्रप्रतिष्ठा द्वारा उन्हें इन्द्र बनाया जाता है। ये सभी प्रतिष्ठित इन्द्र
की आवश्यकता के आधार पर हो सम्पन्न होते