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________________ नियमसार तथा चोक्तं पञ्चास्तिकायसमये ह्न समओ णिमिसो कट्ठा कला य णाली तदो दिवारत्ती। मासोदुअयणसंवच्छरो त्ति कालो परायत्तो।।१४।। तथा हि ह्न (मालिनी) समयनिमिषकाष्ठा सत्कलानाडिकाद्याद् दिवसरजनिभेदाज्जायते काल एषः। न च भवति फलं मे तेन कालेन किंचिद् निजनिरूपमतत्त्वं शुद्धमेकं विहाय ।।४७ ।। इस गाथा और उसकी टीका में यह कहा गया है कि पुद्गल का एक अविभागी परमाणु को अत्यन्त मंदगति से चलकर आकाश के एक प्रदेश से चलकर उसी से सटे हुए दूसरे प्रदेश पर पहुँचने में कम से कम जितना काल लगता है, काल के उस अविभागी अंश को समय कहते हैं। ऐसे असंख्य समयों का एक निमिष, आठ निमिष का एक काष्ठा, सोलह काष्ठा की एक कला, बत्तीस कला की एक घड़ी, साठ घड़ी का दिन-रात, तीस दिन-रात का एक माह, दो माह की एक ऋतु, तीन ऋतु का एक अयन और दो अयन का एक वर्ष होता है। यह व्यवहारकाल समय और आवलि के भेद से दो प्रकार का और भत. भविष्य और वर्तमान के भेद से तीन प्रकार का होता है। काल के ये सब भेद-प्रभेद व्यवहारकाल हैं और कालाणु द्रव्य निश्चयकाल है। भूतकाल अनंत है, भविष्य काल उससे भी अनंतगुणा है और वास्तविक वर्तमानकाल एक समय का होता है तथा उसके निमिष आदि भेद भी हैं।।३१।। 'तथा चोक्तं पंचास्तिकायसमये ह्न तथा पंचास्तिकाय नामक शास्त्र में भी कहा है' ह्न ऐसा लिखकर टीकाकार एक गाथा उद्धृत करते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र (हरिगीत) समय-निमिष-कला-घड़ी दिनरात-मास-ऋतु-अयन। वर्षादि का व्यवहार जो वह पराश्रित जिनवर कहा ||१४|| समय, निमिष, काष्ठा, कला, घड़ी, दिन-रात, मास, ऋतु, अयन और वर्षह्न इसप्रकार पराश्रित काल है, जिसमें पर की अपेक्षा आती है तू ऐसा व्यवहार काल है।।१४।। इसके बाद टीकाकार मुनिराज 'तथाहि लिखकर एक छन्द स्वयं लिखते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न १. पंचास्तिकायसंग्रह, गाथा २५
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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