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________________ नियमसार द्रव्यार्थिकेन जीवा व्यतिरिक्ता: पूर्वभणितपर्यायात् । पर्यायनयेन जीवा: संयुक्ता भवन्ति द्वाभ्याम् ।।१९।। इह हि नयद्रयस्य सफलत्वमक्तम । द्रौ हि नयौ भगवदईत्परमेश्वरेण प्रोक्तो. द्रव्यार्थिक: पर्यायार्थिकश्चेति । द्रव्यमेवार्थ: प्रयोजनमस्येति द्रव्यार्थिकः । पर्याय एवार्थः प्रयोजनमस्येति पर्यायार्थिकः । न खलु एकनयायत्तोपदेशो ग्राह्यः, किन्तु तदुभयनयायत्तोपदेशः । ___ सत्ताग्राहकशुद्धद्रव्यार्थिकनयबलेन पूर्वोक्तव्यंजनपर्यायेभ्यः सकाशान्मुक्तामुक्तसमस्तजीवराशय: सर्वथा व्यतिरिक्ता एव । कुत: ? “सव्वे सुद्धा हु सुद्धणया” इति वचनात् । विभावव्यंजनपर्यायार्थिकनयबलेन ते सर्वे जीवास्संयुक्ता भवन्ति । किंच सिद्धानामर्थपर्यायैः सह परिणतिः, न पुनयंजनपर्यायैः सहपरिणतिरिति । कुतः? सदा निरंजनत्वात् । सिद्धानां सदा निरंजनत्वे सति तर्हि द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकनयाभ्याम् द्वाभ्याम् संयुक्ताः सर्वे जीवा इति सूत्रार्थो व्यर्थः। __निगमो विकल्पः, तत्र भवो नैगमः । स च नैगमनयस्तावत् त्रिविधः, भूतनैगम: वर्तमाननैगमः भाविनैगमश्चेति । तनैगमनयापेक्षया भगवतां सिद्धानामपि व्यंजनपर्यायत्व इस गाथा का भाव टीकाकार मनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं ह्न “यहाँ दोनों नयों का सफलपना कहा है। परमेश्वर अरहंत भगवान ने दो नय कहे हैं ह्न द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय । द्रव्य ही जिसका प्रयोजन है, वह द्रव्यार्थिकनय और पर्याय ही जिसका प्रयोजन है, वह पर्यायार्थिकनय है। ___ एक नय का अवलम्बन लेता हुआ उपदेश ग्रहण करने योग्य नहीं है; किन्तु दोनों नयों का अवलम्बन लेता हुआ उपदेश ग्रहण करने योग्य है । सत्ताग्राहक शुद्धद्रव्यार्थिकनय के बल से पूर्वोक्त व्यंजनपर्यायों से सिद्ध और संसारी ह सभी जीवराशि भिन्न ही हैं; क्योंकि 'सव्वे सुद्धा ह शुद्धणया ह्न शुद्धनय से सभी जीव शुद्ध ही हैं ह्न ऐसा आगमवचन है। विभावव्यंजनपर्यायार्थिकनय के बल से, वे सभी जीव पूर्वोक्त व्यंजन पर्यायों से संयुक्त हैं। विशेष बात यह है कि सिद्धजीवों के अर्थपर्यायों सहित परिणति है, व्यंजनपर्यायों सहित नहीं है; क्योंकि वे सदा ही निरंजन हैं। सिद्धजीवों के सदा निरंजन होने पर तो सभी जीव द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकह्न दोनों नयों से संयुक्त हैं हगाथासूत्र का ऐसा अर्थ व्यर्थ सिद्ध होता है ? उक्त शंका का समाधान करते हुए टीकाकार कहते हैं कि निगम अर्थात् विकल्प; जो उसमें हो, वह नैगम है। भूतनैगमनय, वर्तमाननैगमनय और भावीनैगमनय के भेद से नैगमनय तीन प्रकार का होता है।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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