________________
निश्चयपरमावश्यक अधिकार
४०९
सव्वे पुराणपुरिसा एवं आवासयं च काऊण। अपमत्तपहुदिठाणं पडिवज्ज य केवली जादा ।।१५८।। सर्वे पुराणपुरुषा एवमावश्यकं च कृत्वा ।
अप्रमत्तप्रभृतिस्थानं प्रतिपद्य च केवलिनो जाताः ।।१५८।। परमावश्यकाधिकारोपसंहारोपन्यासोऽयम् । स्वात्माश्रयनिश्चयधर्मशुक्लध्यानस्वरूपं बाह्यावश्यकादिक्रियाप्रतिपक्षशुद्धनिश्चयपरमावश्यकं साक्षादपुनर्भववारांगनानङ्गसुखकारणं कृत्वा सर्वे पुराणपुरुषस्तीर्थकरपरमदेवादय: स्वयंबुद्धा: केचिद् बोधितबुद्धाश्चाप्रमत्तादिसयोगिभट्टारकगुणस्थानपंक्तिमारूढाः सन्तः केवलिनः सकलप्रत्यक्षज्ञानधरा: परमावश्यकात्माराधनाप्रसादात् जाताश्चेति । गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र
(हरिगीत ) यों सभी पौराणिक पुरुष आवश्यकों को धारकर।
अप्रमत्तादिक गुणस्थानक पार कर केवलि हुए।।१५८|| सभी पौराणिक महापुरुष इसप्रकार के आवश्यक करके, अप्रमत्तादि गुणस्थानों को प्राप्त करके केवली हुए हैं।
इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज श्रीपद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैंह्न
“यह परमावश्यक अधिकार के उपसंहार का कथन है। स्वयंबुद्ध तीर्थंकर परमदेवादि एवं बोधित बुद्ध अप्रमत्तादि गुणस्थानों से लेकर सयोग केवली पर्यन्त गुणस्थानों की पंक्ति में आरूढ़ सभी पुराण पुरुष साक्षात् मुक्तिरूपी स्त्री के अशरीरी सुख के कारण को जानकर बाह्य व्यवहार आवश्यकादि क्रिया से प्रतिपक्ष (विरुद्ध) अपने आत्मा के आश्रय से उत्पन्न होनेवाले निश्चय धर्मध्यान और शुक्ल ध्यानस्वरूप शुद्ध निश्चय परमावश्यकरूप आत्माराधना के प्रसाद से सकल प्रत्यक्ष ज्ञानधारी केवली हुए हैं।"
इसप्रकार हम देखते हैं कि इस गाथा और उसकी टीका में यही कहा गया प्राप्त करने का एक ही उपाय है। __ आजतक भूतकाल में जितने भी पौराणिक महापुरुषों ने मुक्ति प्राप्त की है, वर्तमान में विदेहादि क्षेत्र से जो निकट भव्य जीव मुक्ति प्राप्त कर रहे हैं और भविष्य में भी जो जीव मुक्ति प्राप्त करेंगे; वे सभी निश्चय धर्मध्यान और शुक्लध्यानरूप परमावश्यक प्राप्त करके मुक्ति की प्राप्ति करेंगे। कहा भी है कि 'एक होय त्रयकाल में परमारथ को पंथा' ।।१५८।।