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नियमसार
तस्य मुखोद्गतवचनं पूर्वापरदोषविरहितं शुद्धम् ।
आगममिति परिकथितं तेन तु कथिता भवन्ति तत्त्वार्थाः ।।८।। परमागमस्वरूपाख्यानमेतत् । तस्य खलु परमेश्वरस्य वदनघनजविनिर्गतचतुरवचनरचनाप्रपंच: पूर्वापरदोषविरहितः, तस्य भगवतो रागाभावात् पापसूत्रवद्धिंसादिपापक्रियाभावाच्छुद्धः परमागम इति परिकथितः । तेन परमागमामृतेन भव्यैः श्रवणांजलिपुटपेयेन मुक्तिसुन्दरीमुखदर्पणेन संसरणवारिनिधिमहावर्तनिमग्नसमस्तभव्यजनतादत्तहस्तावलम्बनेन सहजवैराग्यप्रासादशिखरशिखामणिना अक्षुण्णमोक्षप्रासादप्रथमसोपानेन स्मरभोगसमुद्भूताप्रशस्तरागांगारैः पच्यमानसमस्तदीनजनतामहत्क्लेशनिर्नाशनसमर्थसजलजलदेन कथिता: खलु सप्त तत्त्वानि नव पदार्थाश्चेति । ____ उस सर्वज्ञ वीतरागी परमात्मा के मुख से निकली हुई, पूर्वापर दोष से रहित, शुद्ध वाणी ही आगम कही जाती है और उस आगम में तत्त्वार्थों का निरूपण होता है।
इस गाथा का भाव टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं ह्न
“यह परमागम के स्वरूप का व्याख्यान है। जिनकी चर्चा विगत गाथाओं में की गई है; उन परमेश्वर के मुख से निकली हुई पूर्वापर दोष (विरोध) रहित और उन भगवान के राग का अभाव होने से पाप सूत्र के समान हिंसादि पाप क्रियाओं से शून्य होने से जो शुद्ध है; चतुराई भरी उस वचन रचना के विस्तार को परमागम कहा गया है। ___जो भव्यजीवों के द्वारा कानरूपी अंजुली से पीनेयोग्य अमृत है, मुक्ति सुन्दरी के मुख का दर्पण है, जो भवसागर के महाभंवर में निमग्न समस्त भव्यजनों को हाथ का सहारा देता है, जो सहजवैराग्यरूपी महल के शिखर का शिखामणि है, जो कभी न देखे गये मोक्षमहल की पहली सीढी है और जो काम-भोगों से उत्पन्न होनेवाले अप्रशस्त रागरूप अंगारों से सिकते (जलते) हुए सभी दीन लोगों के महाक्लेश का नाश करने में समर्थ सजलमेघ अर्थात् पानी से भरा हुआ बादल है; उस परमागम में सात तत्त्व और नौ पदार्थ कहे गये हैं. बताये गये हैं।"
उक्त गाथा में जिनागम, परमागम या जिनवाणी का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि जिन कथनों में पूर्वापर विरोध न हो, जिनमें पाप क्रिया का निषेध किया गया हो; जीवादि तत्त्वार्थों का विवेचन करने वाले उन निर्दोष आप्तवचनों को परमागम कहते हैं।
उन वचनों की विशेषता बताते हुए टीका में कहा गया है कि तत्त्वार्थों के निरूपक वे वचन मोक्षमहल की पहली सीढी हैं, वैराग्यरूपी महल के शिखामणि हैं, भवसागर में निमग्न भव्यजीवों के सहारे हैं, मुक्तिरूपी सुन्दरी के मुख के दर्पण हैं और राग के दावानल को बुझानेवाले जल से भरपूर भरे हुए बादल हैं।
इसप्रकार इस गाथा में जिनागम का स्वरूप स्पष्ट किया गया है ।।८।।