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________________ प्रथम खण्ड निमित्तोपादान : एक अनुशीलन मुक्ति के मार्ग में जिन महत्त्वपूर्ण विषयों का सम्यक् परिज्ञान अत्यन्त आवश्यक है, उनमें से 'उपादान-निमित्त' भी एक ऐसा महत्त्वपूर्ण विषय है, जिसके सम्यक् ज्ञान बिना परावलम्बन की दृष्टि एवं वृत्ति समाप्त नहीं होती, स्वावलम्बन का भाव जागृत नहीं होता, मुक्ति के मार्ग का सम्यक् पुरुषार्थ भी स्फुरायमान नहीं होता है। ___ 'क्रमबद्धपर्याय' और 'निश्चय-व्यवहार' के समान 'उपादान-निमित्त' भी आज का बहुचर्चित विषय है; जिसकी चर्चा कभी विद्वानों की गोष्ठियों में भी नहीं होती थी, परन्तु आज वह जन-जन में चर्चित है। इसकी चर्चा ने जहाँ एक ओर लोगों में इसके सन्दर्भ में जिज्ञासा उत्पन्न की है, तत्सम्बन्धी साहित्य के अध्ययन के लिये प्रेरित किया है। वहीं दूसरी ओर कुछ द्वन्द्व भी खड़े हो गये हैं। आज इसकी चर्चा ने पक्ष-विपक्ष का रूप ले लिया है। यही कारण है कि इसके सन्दर्भ में आज जब भी कोई कुछ बोलता या लिखता है तो उसकी वाणी या लेखनी में पक्ष-विपक्ष की बू आती है; सामाज भी उसे पक्ष या विपक्ष के रूप में ही ग्रहण करती है। आज का यह द्वन्द्व संघर्ष में परिवर्तित न हो जाय - इसके लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि आगम के आलोक में इस विषय पर गंभीरता से निष्पक्ष मंथन किया जाय और उसे समाज के समक्ष सरल-सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया जाय। इस विषय का सर्वांग अनुशीलन ही द्वन्द्व और संघर्ष से बचने का एकमात्र उपाय है। वस्तुस्वरूप के परिज्ञान के लिये भी उपादान-निमित्त की तर्कसंगत, आगमसम्मत सुव्यवस्थित जानकारी अत्यन्त आवश्यक है।
SR No.009462
Book TitleNimittopadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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