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________________ परिशिष्ट-२ उपादान-निमित्त दोहा - भैया भगवतीदास पाद प्रणमि जिनदेव के, एक उक्ति उपजाय । उपादान अरु निमित्त को, कहुँ संवाद बनाय ॥१॥ पूछत है कोऊ तहाँ, उपादान किह नाम । कहो निमित्त कहिये कहा, कब के हो इह ठाम ॥२॥ उपादान निज शक्ति है, जिय को मूल स्वभाव । है निमित्त परयोग तैं, बन्यौ अनादि बनाव ॥३॥ निमित्त कहे मोकों सबै, जानत है जगलोय । तेरो नाव न जानही उपादान को होय ॥४॥ उपादान कहै रे! निमित्त, तू कहा करै गुमान । मोकों जानें जीव वे, जो हैं सम्यक् वान ॥५॥ कहैं जीव सब जगत के, जो निमित्त सोई होय । उपादान की बात को, पूछे नाहीं कोय ॥६॥ उपादान बिन निमित्त तू, कर न सके इक काज । कहा भयो जग ना लखै, जानत हैं जिनराज ॥७॥ देव-जिनेश्वर गुरु-यती, अरु जिन-आगमसार । इह निमित्त तैं जीव सब, पावत हैं भव-पार ॥८॥ यह निमित्त इह जीव के, मिल्यौ अनन्तीबार । उपादान पलट्यौ नहीं, तो भटक्यौ संसार ॥९॥ कै केवलि कै साधु के निकट भव्य जो होय । सो क्षायिक सम्यक् लहै, यह निमित्त बल जोय ॥१०॥
SR No.009462
Book TitleNimittopadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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