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कुछ प्रश्नोत्तर
43 यह मूढ़भाव ही अनन्त आकुलता का कारण है। निमित्त-उपादान का सच्चा स्वरूप समझ में आ जाने से यह मूढ़भाव समाप्त हो जाता है और फिर उस मूढ़भाव से होनेवाली आकुलता भी नहीं होती।
(१८) प्रश्न : मूढभाव अर्थात् मिथ्यात्व तो आत्मानुभूति के बिना समाप्त नहीं होता - ऐसा कहा जाता है; पर यहाँ आप कह रहे हैं कि निमित्त-उपादान की सच्ची समझ से ही मूढभाव समाप्त हो जाता है ?
उत्तर : निमित्त-उपादान का स्वरूप समझने से निमित्ताधीन दृष्टि समाप्त हो जाती है। दृष्टि निमित्तों पर से हटकर त्रिकाली उपादानरूप निजस्वभाव की ओर ढलती है। निजस्वभाव ही तो भगवान आत्मा है और भगवान आत्मा की ओर ढलती हुई दृष्टि ही आत्मानुभूति की पूर्ववर्ती प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया से पार होती हुई ज्ञानपर्याय जब त्रिकालीध्रुव निजभगवान आत्मा को सीधी (प्रत्यक्ष) ज्ञेय बना लेती है, तभी आत्मानुभूति प्रकट हो जाती है और उसीसमय मूढभाव-मिथ्यात्व समाप्त हो जाता है। ___अत: यह कहना असंगत नहीं है कि निमित्त-उपादान की सच्ची समझ में मूढभाव-मिथ्यात्व समाप्त हो जाता है। .
इसप्रकार आध्यात्मिक सुख-शान्ति का मूल उपाय निमित्त-उपादान संबंधी सच्ची समझ ही है। अतः इनका स्वरूप समझने में आलस नहीं करना चाहिये, कठिन कहकर उपेक्षा भी नहीं करनी चाहिये; अपितु पूरी शक्ति लगाकर इन्हें समझने का प्रयास करना चाहिये।
(१९) प्रश्न : निमित्त-उपादान के समझने से आध्यात्मिक सुखशान्ति की ही प्राप्ति होती है कि लौकिकदृष्टि से भी कुछ लाभ है? तात्पर्य यह है कि यदि आध्यात्मिक सुख-शान्ति ही प्राप्त होती है तो फिर आध्यात्मिक लोग ही इसमें उलझें; हम जैसे साधारण लोग इसे समझने में अपनी शक्ति क्यों लगायें, अपना समय क्यों खराब करें?
उत्तर : अरे भाई! आध्यात्मिक सुख-शान्ति के अतिरिक्त लौकिक लाभ भी बहुत है, लौकिक शान्ति भी प्राप्त होती है; पर लौकिक लाभ बताने के पहले मैं यह कहना चाहता हूँ कि आध्यात्मिक सुख-शान्ति ही