________________
कुछ प्रश्नोत्तर
आत्मार्थी को आत्मानुभूति के काल में या उसके पूर्व में सुयोग्य निमित्त सहजभाव से उपलब्ध रहते ही हैं, उन्हें खोजने कहीं जाना नहीं पड़ता ।
31
महावीर के जीव की शेर की पर्याय में जब पात्रता पकी तो निमित्तरूप में युगल मुनिराज सहजभाव से उपस्थित ही थे । उनका संयोग मिलाने के लिये शेर ने क्या प्रयत्न किया था? ज्ञानियों के सम्पर्क में जीवनभर निरन्तर रहनेवाले लोग क्या सभी सम्यग्दर्शन प्राप्त कर ही लेते हैं? हमने और आपने ऐसे अनेक लोगों को देखा है कि जो जीवनभर ज्ञानियों के सम्पर्क में रहे, उनकी सेवा करते रहे, पर कुछ भी हाथ नहीं लगा ।
(९) प्रश्न : यदि ज्ञानियों के समागम में भी किसी को कुछ उपलब्ध नहीं हुआ, तो इसका यह अर्थ तो नहीं है कि हमें सत्संगति नहीं करनी चाहिये ?
उत्तर : नहीं, यह अर्थ तो कदापि नहीं है। सत्समागम में रहना तो जीवन का सौभाग्य है; क्योंकि सत्संगति की रुचि न केवल हमारे उज्ज्वल भविष्य की सूचक है, अपितु वर्तमान के निर्मल परिणामों को भी बताती है । यदि हमारे परिणाम वर्तमान में ही विकृत होते तो हम असत् लोगों के समागम में ही रहना पसन्द करते !
सत्समागम अच्छी बात होने पर भी सबकुछ सत्समागम से ही हो जानेवाला नहीं है । सत्समागम तो निमित्तमात्र है, जबतक हमारे अन्तर की तैयारी नहीं होगी, उपादानगत योग्यता का परिपाक नहीं होगा, दृष्टि स्वभावसन्मुख नहीं होगी; तबतक आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त होनेवाला नहीं है। इस बात को भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिये ।
जीवनभर सत्समागम में रहने पर भी आत्मलाभ की प्राप्ति नहीं हुईइसका भी एकमात्र यही कारण है कि उनकी दृष्टि सत्समागम पर ही रही, स्वभाव के सन्मुख नहीं हुई । अतः सत्समागम में रहना तो अच्छा है, पर उसके लिये भी व्यग्र होने की आवश्यकता नहीं है । जिसका जितना महत्त्व
-