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कुछ प्रश्नोत्तर
29 आत्मकल्याण करने के लिये इस विषय का समझना अत्यन्त आवश्यक है। इसे समझे बिना आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त नहीं होता। करुणासागर आचार्यों ने जिनवाणी में इस विषय का विवेचन मुक्तिमार्ग में अत्यन्त उपयोगी जानकर ही किया है। अतः इसके समझने में आनेवाली थोड़ीबहुत कठिनाई को देखकर घबराना नहीं चाहिये, घबराकर इसे यों ही नहीं छोड़ देना चाहिये, इसके समझने से मुख नहीं मोड़ना चाहिये; अपितु इस विषय को अत्यन्त उपयोगी जानकर इसे समझने में पूरी शक्ति लगाना चाहिये, समय लगाना चाहिये, उपयोग लगाना चाहिये।
(७) प्रश्न : आप ही तो कहते हो कि यदि अपना कल्याण करना है तो आत्मा को जानो, पहिचानो और उसी में जम जावो, रम जावो; क्योंकि सुखी होने का एकमात्र यही उपाय है। इसमें निमित्त-उपादान समझने की क्या आवश्यकता है?
उत्तर : आत्मा का कल्याण भी एक कार्य है, अपने को जाननापहिचानना भी एक कार्य है, अपने में जमना-रमना भी एक कार्य है; और कोई भी कार्य कारण के बिना सम्पन्न नहीं होता। निमित्त और उपादान कारणों के ही प्रकार हैं। अत: आत्मकल्याण के लिये, अपने को जाननेपहिचानने के लिये, अपने में जमने-रमने के लिये उनका स्वरूप अच्छी तरह जानना अत्यन्त आवश्यक है।
निमित्त और उपादान का सही स्वरूप नहीं समझने के कारण आत्मकल्याणरूप कार्य करने के लिये भी यह आत्मा परपदार्थों के सहयोग की आकांक्षा से पर की ओर ही झाँका करता है; स्वयं की ओर देखता तक नहीं। अत: यह समझना अत्यन्त आवश्यक है कि अपने आत्मा के कल्याण का कार्य तो स्वयं के आश्रय से, स्वयं की पात्रता से, स्वयं में ही सम्पन्न होता है; परपदार्थ तो उसमें मात्र निमित्त ही होते हैं।
जब द्रव्यस्वभाव में पर्यायगत पात्रता का परिपाक होता है तो निमित्त भी सहज ही उपस्थित रहते हैं । अत: निमित्तों पर से दृष्टि हटाकर त्रिकाली