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________________ निमित्तोपादान वस्तुतः कार्य तो उपादान की पर्यायगत योग्यता के अनुसार ही सम्पन्न होता है; निमित्त की तो मात्र अनुकूलता के रूप से उपस्थिति ही रहती है । 28 निमित्तों का कथन जिनागम में अनेक प्रकार से प्राप्त होता है । सर्वत्र उसकी अपेक्षा को समझना चाहिये, अन्यथा चित्त में अनेक भ्रम खड़े हो सकते हैं। चित्त में अनेक प्रकार के भ्रम खड़े न हों, वृत्ति में चंचलता न आवे; इसके लिये निमित्त उपादान का स्वरूप गहराई से समझना चाहिये । ( ६ ) प्रश्न : यह विषय तो बहुत कठिन लगता है। यह सब तो विद्वानों के समझने के विषय हैं। सामान्य जनता को निमित्त उपादान से क्या लेनादेना ? उत्तर : वैसे थोड़ी-बहुत कठिनाई तो सभी विषयों के समझने में होती है । कोई भी विषय क्यों न हो, जबतक उसकी गहराई में नहीं जावेंगे, वह समझ में नहीं आवेगा । हम यों ही चलते-फिरते किसी विषय को समझना चाहें तो यह तो सम्भव नहीं है; पर ऐसी बात भी नहीं है कि हम थोड़ा उपयोग को सूक्ष्म करें और यह विषय समझ में नहीं आवे। उपयोग को सूक्ष्म करके रुचिपूर्वक समझने का प्रयास करें तो यह विषय भी सबकी समझ में आ सकता है। यह सोचना ही सबसे बड़ी बाधा है कि यह तो विद्वानों का विषय है, सामान्य जनता को इससे क्या लेना-देना? क्या सामान्य जनता को अपना कल्याण नहीं करना है? यदि उसे अपना कल्याण करना है तो उसे भी यह सब समझना ही होगा । यदि इसका सम्बन्ध आत्मकल्याण से नहीं हो तो फिर विद्वान भी इसके समझने में अपना समय क्यों खराब करें ? क्या उनके समय की कोई कीमत नहीं है; जो वे अपना समय अनावश्यक अनुपयोगी विषयों की माथापच्ची में बर्बाद करें ?
SR No.009462
Book TitleNimittopadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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