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________________ एक अनुशीलन उक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि नियामक कारण त्रिकाली उपादानकारण नहीं, अपितु क्षणिक उपादानकारण है। निमित्तकारण को नियामक कारण मानने वालों को इस तथ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये । 7 निमित्त को नियामक कारण के रूप प्रस्तुत करते समय यह तर्क दिया गया था कि उपादान तो सदा विद्यमान रहता है, यदि उसे ही नियामक या समर्थ कारण माना जायेगा तो कार्य के सदा ही उत्पन्न होते रहने का प्रसंग आयेगा । उक्त संदर्भ में वस्तुस्थिति यह है कि त्रिकाली उपादानकारण को ही उपादानकारण मानकर यह कहा गया था कि उपादान तो सदा ही रहता है, जबकि क्षणिक उपादान भी तो उपादान है, जो सदा उपस्थित नहीं रहता; अत: उपादान को समर्थ कारण मानने पर कार्य सदा होते रहने के प्रसंग उपस्थित होने का आरोप निराधार है; क्योंकि कार्य का नियामक कारण तो क्षणिक उपादान है, त्रिकाली उपादान नहीं । यहाँ एक प्रश्न सम्भव है कि जब क्षणिक उपादान ही समर्थ उपादान है तो फिर त्रिकाली उपादान का क्या महत्व रहा ? भाई, बात ऐसी है कि उपादान तो निजशक्ति को कहते हैं। जैसा कि कहा गया है. " उपादान निजशक्ति है, जिय को मूल स्वभाव । है निमित्त परयोग तैं, बन्यो अनादि बनाव ॥" शक्ति दो प्रकार की होती है - द्रव्यशक्ति और पर्यायशक्ति । इन दोनों शक्तियों का नाम ही उपादान है। पर्यायशक्ति से युक्त द्रव्यशक्ति ही कार्यकारी होती है। द्रव्यशक्ति नित्य होती है और पर्यायशक्ति अनित्य । नित्यशक्ति के आधार पर कार्य की उत्पत्ति मानने पर कार्य के नित्यत्व का प्रसंग आता है; अतः पर्यायशक्ति को ही कार्य का नियामक स्वीकार किया गया है। १. भैया भगवतीदास : उपादान - निमित्त सम्वाद, दोहा-३
SR No.009462
Book TitleNimittopadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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