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________________ एक अनुशीलन है और अनन्तर-उत्तर क्षणवर्तीपर्याय कार्य है। इसे इसप्रकार भी कहा जाता है कि अनन्तरपूर्वक्षणवर्तीपर्याय से युक्त द्रव्य कारण है और अनन्तरउत्तरक्षणवर्तीपर्याय से युक्त द्रव्य कार्य है। उक्त संदर्भ में कार्तिकेयानुप्रेक्षा का निम्नांकित कथन द्रष्टव्य है - "पुव्वपरिणामजुत्तं कारणभावेण वट्टदे दव्वं । उत्तर परिणाम जुदं तं चिय कज्ज हवे णियमा ॥ २३०॥ अनन्तरपूर्वपरिणाम से युक्त द्रव्य कारणरूप से परिणमित होता है और अनन्तर-उत्तरपरिणाम से युक्त वही द्रव्य नियम से कार्य होता है।" इसी बात को स्पष्ट करते हुए सिद्धान्ताचार्य पण्डित फूलचन्दजी लिखते हैं - "जो अनन्तरपूर्वपर्यायविशिष्ट द्रव्य है, उसकी उपादान संज्ञा है और जो अनन्तर-उत्तरपर्यायविशिष्ट द्रव्य है, उसकी कार्य संज्ञा है।" (ख) उस समय की पर्याय की उसी समय होनेरूप योग्यता क्षणिक उपादानकारण है और वह पर्याय कार्य है। इसप्रकार उपादानकारण तीन प्रकार का हो गया, जो इसप्रकार है - (१) त्रिकाली उपादानकारण । (२) अनन्तरपूर्वक्षणवर्तीपर्याय के व्ययरूप क्षणिक उपादानकारण। (३) तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादानकारण। क्षणिक उपादान के नाम लम्बे होने के कारण उन्हें निम्नांकित संक्षिप्त नामों से भी अभिहित किया जाता रहा है - (क) अनन्तरपूर्वक्षणवर्तीपर्याय (ख) तत्समय की योग्यता उपादान के उक्त तीन भेदों की स्थिति स्पष्ट करने के लिये निम्नांकित चार्ट उपयोगी है - १. जैनतत्त्वमीमांसा, पृष्ठ ७५
SR No.009462
Book TitleNimittopadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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