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प्रथम संस्करण
:
३ हजार
मूल्य :?
अपनी बात आध्यात्मिक वातावरण से ओतप्रोत इस समय में नयज्ञान की आवश्यकता से सभी परिचित हैं। सभी नयों के बारे में विशेष जानकारी भी चाहते हैं, पर नयों की दुरूहता और विस्तार से घबड़ाते हैं। अतः संक्षेप रुचि पाठकों के दृष्टिकोण से बनाई गई इस पुस्तक में सरलता का विशेष ध्यान रखा गया है। इसी उद्देश्य से नयों के क्रम देने में फेरफार किया है. पहले व्यवहारनय फिर निश्चयनय को समझाया गया है। व्यवहारनय के भेद-प्रभेद में भी पहले असद्भूत बाद में सद्भुत; पहले उपचरित बाद में अनुपचरित को लिया है ह्न इसीप्रकार इस पुस्तक में सर्वत्र समझना चाहिए।
जिन अध्यात्म में प्रवेश के लिए अध्यात्म के नयों को समझना अति आवश्यक है अतः इस पुस्तक में मात्र अध्यात्म के नयों की ही चर्चा की गई है।
'जीवन में सुख और सफलता प्राप्त करने की प्रथम सीढ़ी 'नय' ज्ञान ही है। अपेक्षा (नय) ज्ञान के बिना कोई भी संवाद संभव ही नहीं है। विश्व में नयज्ञान की सूक्ष्म पर विस्तृत चर्चा मात्र जैनदर्शन की देन है।
वस्तुतः वस्तु कैसी है? व्यवहार में उसे क्या कहते हैं? अजीव होते हुए भी शरीर को सजीव क्यों और कब कहा जाता है? इसका प्रयोजन एवं कारण क्या है? आदि सभी बातें नयज्ञान से ही स्पष्ट होती हैं।
प्रस्तुत पुस्तक 'नयचक्र गाईड' डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल द्वारा लिखित परमभाव प्रकाशक नयचक्र के प्रथम दो अध्यायों के आधार पर बनाई गई है।
आज का युग गाईड़ का युग है। आज की युवा पीढ़ी स्कूल की पढ़ाई भी गाईड से ही करती है अतः उन्हें समझाने के लिए उन्हीं की रुचि अनुसार नयों को संक्षेप में गाईड शैली में प्रस्तुत किया गया है।
यह गाईड़ पढ़कर वे नयों का सामान्य स्वरूप समझें और उनमें नयों को विस्तार से जानने की जिज्ञासा जाग्रत हो तथा नयचक्र में प्रवेश के लिए यह पुस्तक गाईड़ का काम करे ह्र ऐसी मेरी भावना है।
ह्र डॉ. शुद्धात्मप्रभा टडैया
मुद्रक: प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर