________________
णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन
रोते-रोते ही सेठानी बोली - " मेरे बेटे का बचपन बर्तन मलतेमलते यों ही अनन्त कष्टों में निकल गया है, न वह पढ़-लिख पाया है, न खेल - खा पाया।
न
हाय राम ! मेरे ही आँखों के सामने उसने अनन्त कष्ट भोगे हैं, मैंने उसे ढंग का खाना ही दिया और न पलभर निश्चित हो आराम ही करने दिया, जब देखो तब काम में ही लगाये रखा।"
८०
जो सेठानी इस बात को स्वीकार करने को कतई तैयार न थी कि वह उस बालक से बहुत काम कराती है और खाना भी ढंग का नहीं देती है, वही अब इकबालिया बयान दे रही है कि मैंने बहुत काम कराया है और खाना भी ढंग का नहीं दिया ।
यह सब अपनेपन का ही माहात्म्य है । अब क्या उसे यह समझाने की आवश्यकता है कि जरा काम कम लिया करें और खाना भी अच्छा दिया करें । अब काम का तो कोई सवाल ही नहीं रह गया है और खाने की भी क्या बात है, अब तो उसकी सेवा में सबकुछ हाजिर है । व्यवहार में इस परिवर्तन का एकमात्र कारण अपनेपन की पहिचान है, अपनेपन की भावना है ।
इसीप्रकार जबतक निज भगवान आत्मा में अपना अपनापन स्थापित नहीं होगा, तबतक उसके प्रति अपनेपन का व्यवहार भी संभव नहीं है ।
इन देहादिपरपदार्थों से भिन्न निज भगवान आत्मा में अपनापन स्थापित होना ही एक अभूतपूर्व अद्भुत क्रान्ति है, धर्म का आरम्भ है, सम्यग्दर्शन है, सम्यग्ज्ञान है, सम्यक्चारित्र है, साक्षात् मोक्ष का मार्ग है, भगवान बनने, समस्त दुःखों को दूर करने और अनन्त अतीन्द्रिय आनन्द प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है ।
निज भगवान आत्मा की आराधना ही वास्तविक धर्म है; क्योंकि निज भगवान आत्मा की आराधना का नाम ही सम्यग्दर्शन- ज्ञान- चारित्र है ।
बारह भावना : एक अनुशीलन, पृष्ठ- १६८
-