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________________ ६२ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन करा गये हैं, जो अब ब्याज सहित दश करोड़ से भी अधिक हो गये होंगे। मरते समय यह बात वे मुझे बता गये थे।" । यह बात सुनकर वह एकदम उत्तेजित हो गया। थोड़ा-सा विश्वास उत्पन्न होते ही उसमें करोड़पतियों के लक्षण उभरने लगे। वह एकदम गर्म होते हुए बोला___ "यदि यह बात सत्य है तो आपने अभीतक हमें क्यों नहीं बताया?" वे समझाते हुए कहने लगे - "उत्तेजित क्यों होते हो? अब तो बता दिया। पीछे की जाने दो, अब आगे की सोचो।" "पीछे की क्यों जाने दो? हमारे करोड़ों रुपये बैंक में पड़े रहे और हम दो रोटियों के लिये मुँहताज हो गये । हम रिक्शा चलाते रहे और आप देखते रहे। यह कोई साधारण बात नहीं है, जो ऐसे ही छोड़ दी जावे; आपको इसका जवाब देना ही होगा।" "तुम्हारे पिताजी मना कर गये थे।" "आखिर क्यों?" "इसलिए कि बीस वर्ष पहले तुम्हें रुपये तो मिल नहीं सकते थे। पता चलने पर तुम रिक्शा भी न चला पाते और भूखों मर जाते।" "पर उन्होंने ऐसा किया ही क्यों?'' "इसलिए कि नाबालिगी की अवस्था में कहीं तुम यह सम्पत्ति बर्बाद न कर दो और फिर जीवनभर के लिए कंगाल हो जावो । समझदार हो जाने पर तुम्हें ब्याज सहित आठ-दश करोड़ रुपये मिल जावें और तुम आराम से रह सको। तुम्हारे पिताजी ने यह सब तुम्हारे हित में ही किया है। अत: उत्तेजना में समय खराब मत करो। आगे की सोचो।" - इसप्रकार सम्पत्ति सम्बन्धी सच्ची जानकारी और उस पर पूरा . विश्वास जागृत हो जाने पर उस रिक्शेवाले युवक का मानस एकदम
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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