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णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन
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है। यदि पड़ोसियों के बरगलाने से संबंध रुक जाते होते तो आज एक भी कन्या की शादी सम्भव न होती; क्योंकि बरगलाने वाले पड़ोसियों की कमी नहीं है, पर इसकारण आजतक एक भी कन्या कुंवारी नहीं रही । असली बात यह है कि जिसे स्वयं ही संबंध ठीक नहीं लगता, वे ही बरगलाने वालों के चक्कर में आते हैं; जिसे सोलह आने जंच जाता है, उन पर बरगलाने वालों का कोई असर नहीं होता; क्योंकि सब जीवों के सभी लौकिक कार्य अपनी क्रमबद्धपर्यायानुसार एवं अपने कर्मोदयानुसार ही होते हैं।
पुराणों और इतिहासों में ऐसे हजारों उदाहरण मिल जावेंगे जो लड़का किसी लड़की पर रीझ गया तो माँ-बाप के लाख मना करने पर भी नहीं मानता; यहाँ तक कि राजपाट, धन-सम्पत्ति, घर-परिवार सभी से वंचित क्यों न होना पड़े।
यह सत्य हम सबके ख्याल में अच्छी तरह आ जावे तो व्यर्थ में ही होने वाले अनन्त राग-द्वेषों से बचा जा सकता है। दूसरों के सोचने, कहने और करने से हमारा कुछ भी भला-बुरा नहीं होता, हमारा भला-बुरा पूर्णत: हमारे कर्मानुसार ही होता है ।
इसपर यदि कोई कहे कि यदि ऐसा है तो हम पड़ोसियों से राग-द्वेष न करके कर्मों से राग-द्वेष करेंगे; उनसे कहते हैं कि हे भाई ! एक बार तुम पड़ोसियों से राग-द्वेष करना तो छोड़ो, फिर कर्मों से भी राग-द्वेष करना सम्भव न होगा; क्योंकि कर्म भी तो तुम्हारे किए हुये ही हैं, तुमने ही पर पदार्थो से राग-द्वेष करके जो कर्म बाँधे थे, वे ही तो उदय में आकर इष्ट-अनिष्ट रूप से फलते हैं। इसमें कर्मों का क्या दोष है ? दोष तो पूर्णत: तुम्हारा ही है। इस पर यदि तुम कहो कि यदि ऐसा है तो हम स्वयं से राग-द्वेष करेंगे, पर ऐसा नहीं होता; क्योंकि जब बात स्वयं पर आती है तो सब शांत हो जाते हैं।
जब कांच का गिलास दूसरों से फूटता है तो हम बड़बड़ाते हैं, पर जब स्वयं से फूट जाता है तो चुपचाप शांत रह जाते हैं, किसी से कुछ नहीं कहते । इसीप्रकार जब आप यह समझेंगे कि जो भी सुख-दुःख व अनुकूलता