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________________ जीवन-मरण और सुख-दुःख है। तबतक कोई व्यापारी ईमानदारी के चक्कर में क्यों पड़ना चाहेगा, वह तो ऊँचा-नीचा करने में ही व्यस्त रहेगा। जबतक मुख्यमंत्री यह समझते रहेंगे कि जनता की सेवा करने से क्या होता है, कुर्सी तो तभी तक सुरक्षित है, जबतक प्रधानमंत्री प्रसन्न है; तबतक कोई मुख्यमंत्री जनता की समस्यायें सुलझाने में क्यों माथा मारेगा, वह तो प्रधानमंत्री को प्रसन्न करने के लिए दिल्ली में ही डटा रहेगा। इसप्रकार हम देखते हैं कि मिथ्या श्रद्धा के कारण, गलत विश्वास के कारण, उल्टी मान्यता के कारण आज देश की क्या दुर्गति हो रही है। यदि यह श्रद्धा पलट जावे तो चन्द दिनों में ही देश का नक्शा पलट सकता है। छात्र यह सोचने लगे कि प्राध्यापकों के घर के चक्कर काटने से क्या होता है, विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान तो सर्वाधिक अध्ययन करने वाले छात्र को ही प्राप्त होगा। लिपिक यह सोचने लगे कि अधिकारियों के चक्कर काटने से क्या होता है, पदोन्नति तो अच्छा काम करने से ही होगी। व्यापारी यह सोचने लगे कि बेईमानी से स्थाई लाभ प्राप्त नहीं किया जा सकता है; क्योंकि काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती, किसी-किसी को और कभी-कभी ही धोखा दिया जा सकता है, सभी को सदाकाल धोखे में रखना सम्भव नहीं है। यदि स्थाई लाभ प्राप्त करना है तो ईमानदारी से ही काम करना होगा। मुख्यमंत्री भी यह समझने लगे कि प्रधानमंत्री की चापलूसी करने से क्या होता है, पद तो तभी तक सुरक्षित है, जबतक जनता जनार्दन चाहेगी। बस, इतना विवेक जागृत होते ही, श्रद्धा पलटते ही छात्र प्राध्यापकों के घर के चक्कर नहीं काटेंगे, पढ़ेंगे; लिपिक अधिकारियों की गुलामी नहीं करेंगे, काम करेंगे; व्यापारी भी बेईमानी न करेंगे, ईमानदारी से व्यापार करेंगे और मुख्यमंत्री दिल्ली में ही नहीं जमे रहेंगे, अपने प्रान्त में ही रहकर जनता की सेवा करेंगे; उनकी समस्यायें सुनेंगे, समझेंगे, सुलझायेंगे। जिस दिन ऐसा होगा, उस दिन देश का नक्शा बदल जायेगा। इसीप्रकार जबतक यह आत्मा यह मानता रहेगा कि मैं दूसरों को मारता
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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