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________________ प्रकाशकीय (तृतीय संस्करण) सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक प्रवक्ता तत्त्ववेत्ता : डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के अत्यधिक उपयोगी एवं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण निबंधों का यह संकलन जैन अध्यात्म एकेडमी इन नार्थ अमेरिका (JAANA) के अनुरोध पर विदेशों में रहनेवाले अध्यात्मप्रेमी भारतीय भाई-बहिनों के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है। __ वे इसे 2003 के जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में आयोजित जैन एसोसियेशन इन नार्थ अमेरिका (JAANA) के द्विवार्षिक सम्मेलन में वितरित करना चाहते हैं। ध्यान रहे इस सम्मेलन में दश हजार से अधिक भाई-बहिन सम्मिलित होते हैं। इस प्रकाशन में विविध विषयों से संबंधित विविधप्रकार के आठ निबंधों का समावेश किया गया है; जो इसप्रकार हैं - 1. णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन, 2. भक्ति और ध्यान, 3. जीवन-मरण और सुख-दुःख, 4. मैं स्वयं भगवान हूँ, 5. अपने में अपनापन, 6. अपनी खोज, 7. एकता की अपील, 8. अयोध्या समस्या पर वार्ता। उक्त निबंधों में जहाँ एक ओर पंचपरमेष्ठी के स्वरूप पर प्रकाश डालनेवाला णमोकार महामंत्र' जैसा निबंध है तथा भक्ति और ध्यान की चर्चा है तो दूसरी ओर भगवान आत्मा और उसकी खोज से संबंधित निबंध हैं; इसीप्रकार एक ओर 'जीवन-मरण और सुख-दुःख' जैसे शाश्वत मूल्यों की चर्चा की गई है तो दूसरी ओर उनका सामाजिक और राष्ट्रीय चिन्तन एकता की अपील और अयोध्या वार्ता में प्रस्फुटित हुआ है। डॉ. भारिल्ल जितने सफल प्रवचनकार हैं, उतने ही सिद्धहस्त लेखक भी हैं। उनके द्वारा लगभग 72 छोटी-बड़ी पुस्तकों का प्रणयन हुआ है, जिनमें से कुछ का तो आठ भाषाओं में अनुवाद हुआ है और सबकुछ मिलाकर 42 लाख की संख्या में छपकर समाज के घर-घर में पहुंच चुकी हैं। प्रस्तुत कृति का अध्ययन कर आप स्वयं उनकी लेखनी से अभिभूत हुए बिना नहीं रहेंगे। हमारा विश्वास है कि डॉ. भारिल्ल के विचारों की प्रतिनिधि उक्त कति से पाठकों को उनके सुलझे हुए विचारों को जानने का अवसर तो मिलेगा ही, उनकी आकर्षक लेखन शैली, सरल-सुबोध भाषा एवं प्रभावक व्यक्तित्व का भी परिचय प्राप्त हो सकेगा, जिससे उनके शेष साहित्य के अध्ययन की प्रेरणा भी प्राप्त होगी, उनके प्रवचनों को सुनने की भावना जाग्रत होगी। इसी भावना से पुस्तक के अन्त में उनके प्रकाशनों की सूची भी दी गई है। नयनाभिराम आवरण व सुन्दर कलेवर में प्रस्तुत करने का श्रेय प्रकाशन विभाग के प्रभारी अखिल बंसल को जाता है। आप सभी णमोकार महामंत्र का हार्द समझकर भव का अभाव करें - इसी भावना के साथ -ब्र. यशपाल जैन, एम.ए. प्रकाशन मंत्री पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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