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एकता की अपील
चर्चा सफल होती है। इसके लिए पूर्व तैयारी अत्यन्त आवश्यक है।
आप या हम तभी तो कोई बात स्वीकार कर सकते हैं, जब उस बात को अपने-अपने पक्ष की जनता को भी स्वीकृत करा सकें। यदि अपने पक्ष की जनता को स्वीकार न करा सके तो हमारे और आपके स्वीकार करने मात्र से क्या होगा ?
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सामाजिक एकता के लिए विशाल दृष्टिकोण से कार्य करना होगा और ऐसा समाधान खोजना होगा, जो संबंधित सभी व्यक्तियों को स्वीकार हो सके, अन्यथा एकता सम्भव नहीं हो सकती ।
समझौता का रास्ता अत्यन्त आवश्यक और उपयोगी होते हुए भी सहज व सरल नहीं होता; इसमें हमारी बुद्धि, क्षमता, सामाजिक पकड़, धैर्य - सभी कसौटी पर चढ़ जाते हैं। फिर भी यदि दोनों पक्ष एक-दूसरे की कठिनाइयाँ समझें और सच्चे दिल से रास्ता खोजें तो मार्ग मिलता ही है।
एकबार एकसाथ मिलना-बैठना आरम्भ हो जाय तो बहुत-सी समस्याएँ तो अपने-आप समाप्त हो जाती हैं।
एक बात यह भी तो है कि हम और आप ही तो सबकुछ नहीं हैं, आपके साथी - सहयोगी भी हैं और हमारे भी साथी - सहयोगी हैं। जबतक उनसे विचार-विमर्श कर पहल न की जावे, तबतक कुछ भी सम्भव नहीं ।
इस सब के लिए वातावरण में भी कुछ नरमी तो आनी ही चाहिए। बिना नरमी के जब एक साथ उठना-बैठना ही सम्भव नहीं है तो एकता का रास्ता कैसे निकल सकता है? आप जरा अपने पक्ष में नरमी का वातावरण बनाइये, जिससे संवाद की स्थिति बन सके ।
हम स्वयं इस दिशा में वर्षों से सक्रिय हैं, इस दिशा में हमने अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, अनेक कठिनाइयों के रहते हुए भी उनका सफल क्रियान्वयन भी किया है । हमारे उक्त प्रयत्नों से सभी समाज भली-भाँति परिचित है; उनका उल्लेख करना न तो आवश्यक ही है और न उचित ही है।
यद्यपि हमारे उक्त प्रयत्नों के सुपरिणाम आ रहे हैं, तथापि जन-मानस