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नक्शों में दशकरण (जीव जीता-कर्म हारा)
बंधकरण ज्ञानावरणकर्म का बंध
• जहाँ हम नया कर्मबंध दिखा रहे हैं, वहीं पूर्वबद्ध कर्म भी चारों (उदाहरण)
प्रकार का विद्यमान है और भविष्य में भी नया कर्म बँधेगा। • एक समय में अनंत कर्म-परमाणु बंध रहे हैं - उनका विभाजन ३०
अधिक से अधिक ७० कोडाकोडीसागरोपम काल के पूर्व बाँधा समयों में (३० कोडाकोडीसागरोपम के प्रत्येक समय में ) करके
गया कर्म संसारी जीव के पास विद्यमान रह सकता है। अनादिकाल ५---दिखाया है।
का कर्म किसी भी जीव के पास सत्ता में नहीं रहता। १०८ यह एक स्थान १० कोडाकोडी सागरोपम का माना
वास्तविकरूप से सोचा जाय तो बंध मात्र एक समय का है। 4 गया है; ऐसे तीस स्थान है अर्थात् ज्ञानावरण का
कर्म का स्वभाव (प्रकृतिबंध) वही का वही रह सकता है अथवा ३० कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति बताई गयी है। ३५
बदल भी सकता है - अपने ही उपभेदों में - उदाहरण असाता का ४० .बंध के प्रथम समय में १५० परमाणओं का बंध माना
साता, मतिज्ञानावरण का श्रुतज्ञानावरण। - गया है। सत्य तो यह है कि प्रत्येक समय में अनन्त
• भूतकाल में बंधे हुए कर्म आबाधाकाल पूर्ण होने के बाद उदय में परमाणु बंधते हैं।
आ सकते हैं। अंतिम समय में ५ परमाणुओं का बंध बताया है।
• कुछ जीवों को एक अंतर्मुहूर्त के पहले बँधा हुआ कर्म भी प्रथम समय में कर्म-परमाणु अधिक और अनुभाग
आबाधाकाल पूर्ण होने के बाद उदय में आ सकता है। . (फलदान शक्ति) कम रहता है, यह स्वाभाविक १०० व्यवस्था है।
प्रश्न : वर्तमान में कर्मबन्धन है, हीनदशा है, रागादिभाव भी अंतिम समय में कर्मपरमाणु कम और (फलदान
वर्तते हैं, तो ऐसी दशा में शुद्धात्मा की अनुभूति कैसे हो सकती है? शक्ति) अधिक रहती है, यह भी स्वभाविक ही है।
उत्तर : रागादिभाव वर्तमान में वर्तते होने पर भी वे सब भाव १२५५ • जैसे प्रदेशबंध समानरूप से प्रतिसमय घटता जाता है
क्षणिक हैं, विनाशीक हैं, अभूतार्थ हैं, झूठे हैं। अतः उनका लक्ष वैसे स्थितिबंध और अनुभागबंध समानरूप से बढ़ता
छोड़कर त्रिकाली, ध्रुव, शुद्ध आत्मा का लक्ष करके आत्मानुभूति १४५६- जाता है।
हो सकती है। रागादिभाव तो एक समय की स्थितिवाले हैं और १५०- - • एक समय में कर्मबंध में निमित्त होनेवाला विभाव भाव
भगवान आत्मा त्रिकाल टिकनेवाला अबद्धस्पृष्टस्वरूप है। (मिथ्यात्वादि बंध का निमित्त) एक प्रकार का होता है और
इसलिए एक समय की क्षणिक पर्याय का लक्ष छोड़कर त्रिकाली, नैमित्तिक कार्य अनेक प्रकार के होते हैं।
शुद्ध आत्मा का लक्ष करते ही - दृष्टि करते ही आत्मानुभूति हो सकती है।
- ज्ञानगोष्ठी, पृष्ठ ५१ १. पहले समय में कम फल, फिर थोड़ा अधिक फल, फिर अधिक, फिर अधिक Anajukhy mohamam books
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'कर्म के परमाणुओं की संख्या घटती गयी है और फलदान शक्ति बढ़ती गयी है।
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१३०६- १३५१४०५
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