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________________ ५ उत्कर्षण • कर्मों की स्थिति और अनुभाग में वृद्धि होना उत्कर्षण है। • नूतन कर्म - बंध के समय, पूर्वबद्ध कर्म की स्थिति में से कर्म परमाणुओं की स्थिति - अनुभाग का बढ़ना, उत्कर्षण है। आगे उदाहरण दे रहे हैं• यथा १७वें समय में (१०,०००) दस हजार कर्म · परमाणु हैं। जीव के विशेष परिणामों के कारण उन दस हजार में से जो एक हजार कर्म परमाणु, अधिक स्थिति एवं अधिक अनुभाग वाले नवीन कर्म बंध में जाकर मिलते हैं; उसे उत्कर्षण कहते हैं । पूर्वबद्ध कर्म में जो निम्न / प्रथमादि समयवर्ती कर्मों के निषेक हैं, उनमें कर्म-परमाणुओं की संख्या अधिक है और फल देने की अनुभाग शक्ति कम रहती है। • ऊपर-ऊपर अर्थात् अधिक-अधिक स्थितिवाले ३६ ३५३४← ३३ ३२← ३१← 304 २९← २८← २७← २६← २५८ २४←२३← २२← २१← २० १९← १८१७← १६ १५÷ १४← १३← १२← १०९ ९← कर्मों के निषेकों में कर्म-परमाणुओं की संख्या कम रहती और फल देने की शक्ति अधिक रहती है। इसतरह कम स्थिति- अनुभाग सहित कर्म, उपरिम (अधिक स्थिति तथा अधिक अनुभागवाले) निषेकों में जाकर मिलते हैं; यही उत्कर्षण है। • इसकारण उनकी स्थिति एवं अनुभाग स्वयं ही बढ़ जाते हैं - इस कार्य को उत्कर्षण कहते हैं । • यह कार्य घाति -अघाति दोनों कर्मों में जीव के परिणामों के अनुसार हमेशा होता रहता है। • जिन कर्म परमाणुओं की स्थिति कम है, उनकी स्थिति तत्काल बँधनेवाले कर्म के संबंध से बढ़ना उत्कर्षण है। (ज.ध. ७ / २४३) ८← ७८ ६८ • · ५ समय की आबाधा · · | 3D.Kala Ananji Adhyatmik Duskaran Book (११) उत्कर्षण २१ • बंधावस्था में स्थित कर्मों में पूर्व की स्थिति या अनुभाग में वृद्धि, उत्कर्षण नाम को प्राप्त होती है। • उदयावली की स्थिति के प्रदेशों का उत्कर्षण नहीं बनता । • उदयावली के बाहर की स्थितियों का उत्कर्षण यथायोग्य संभव है। • उत्कर्षण बंध के समय में ही होता है। जैसे ह्न यदि जीव साता वेदनीय कर्म का बंध कर रहा है तो उसमें सत्ता में स्थित साता वेदनीय के परमाणुओं का ही उत्कर्षण होगा, न कि असातावेदनीय के परमाणुओं का • तेरहवें गुणस्थान पर्यंत उत्कर्षण संभव है, आगे नहीं। (गो.क. ४४२) • सभी कर्म प्रकृतियों में उत्कर्षण करण होता है । • उत्कर्षित कर्म की स्थिति, बध्यमान स्थिति से तुल्य या हीन होती है; अधिक कदापि नहीं । • आयु कर्म में बध्यमान आयु का उत्कर्षण हो सकता है पर भुज्यमान का नहीं । (ज.ध. १ पृ. १३४) प्रश्न : मिथ्यात्व का नाश स्वसन्मुख होने से ही होता है या कोई और दूसरा उपाय भी है ? उत्तर : स्वाश्रय से ही मिथ्यात्व का नाश होता है, यही एकमात्र उपाय है। इसके अतिरिक्त दूसरा उपाय प्रवचनसार गाथा ८६ में बताया है कि स्वलक्ष से शास्त्राभ्यास करना उपायान्तर अर्थात् दूसरा उपाय है, इससे मोह का क्षय होता है ।। २५ ।। - ज्ञानगोष्ठी, पृष्ठ-९२
SR No.009459
Book TitleNaksho me Dashkaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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