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________________ ऐसी अज्ञानी - असंयत दशा में रहते हुए मैं भगवान कैसे बन सकता हूँ?" -- अत्यन्त स्नेहपूर्वक समझाते हुए ज्ञानी धर्मात्मा कहते हैं- " भाई, ये बननेवाले भगवान की बात नहीं है, यह तो बने - बनाये भगवान की बात है । स्वभाव की अपेक्षा तुझे भगवान बनना नहीं है, अपितु स्वभाव से तो तू बना-बनाया भगवान ही है । - ऐसा जानना - मानना और अपने में ही जमजाना, रमजाना पर्याय में भगवान बनने का उपाय है। तू एकबार सच्चे दिल से अन्तर की गहराई से इस बात को स्वीकार तो कर; अन्तर की स्वीकृति आते ही तेरी दृष्टि परपदार्थों से हटकर सहज ही स्वभाव - सन्मुख होगी, ज्ञान भी अन्तरोन्मुख होगा और तू अन्तर में ही समा जायगा, लीन हो जायगा, समाधिस्थ हो जायगा। ऐसा होने पर तेरे अन्तर में अतीन्द्रिय आनन्द का ऐसा दरिया उमड़ेगा कि तू निहाल हो जावेगा, कृतकृत्य हो जावेगा । एकबार ऐसा स्वीकार करके तो देख । " "यदि ऐसी बात है तो आजतक किसी ने क्यों नहीं बताया ?" 44 'जाने भी दे, इस बात को, आगे की सोच । " "क्यों जाने दें? इस बात को जाने बिना हम अनन्त दुःख उठाते रहे, स्वयं भगवान होकर भी भोगों के भिखारी बने रहे और किसी ने बताया तक नहीं।' मैं स्वयं भगवान हूँ १८
SR No.009457
Book TitleMain Swayam Bhagawan Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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